Tuesday, June 7, 2011
सियासतबाज हुआ जूता
धन्य है वो जूता...जो पैरों से निकलकर किसी के सिर पर तन जाए...लेकिन ऐसी किस्मत सब जूतों को नसीब नहीं होती....ऐसे जूते तो बिरले ही बनते हैं....अब जरा सोचिए कितनी खुशनसीब होगी वो फैक्टरी...जिसने अपनी कोख से सिर पर सवार होने वाले जूते का जन्म दिया....धन्य तो वो ब्रांड भी है...जिसने जूते की इस खास प्रजाति की खोज की....ऐसे जूते आम नहीं होते...भले ही ये आम आदमी के पैरों की शोभा बढ़ाते हों....लेकिन अगर सिर पर तनने की बात आए तो आम आदमी को धोखा दे देते हैं.....क्योंकि ये खास के सिर पर चलना कुझ ज्यादा पसंद करते हैं....जैसे जूता ना हो गेंदे का फूल हो....अरे ये भी कोई बात हुई....आम आदमी से दगाबाजी और खास के सिर से मुहब्बत...ये कहां का इंसाफ है...लेकिन इसमें जूते का कसूर भी नहीं...मानव सभ्यता के इतिहास से ही इंसान ने जूते को सिर पर चढ़ा रखा है...बात बात में जूते का जिक्र...जैसे जूता ना होकर कोई बम बारूद हो....मैं तो उसके साथ जूते से पेश आउँगा....मैं तो भरी पंचायत में उसे जूते से जलील करुंगा...और ज्यादा चूं चापड़ करोगे तो जूता खाओगे....इस तरह के जुमलों ने ही जूतों को महान बना दिया....वैसे अपने देश में जूतियाने का अजीब अजीब तरीके भरे हैं....कहा जाता है कि अगर किसी को जूतियाना हो तो...जूतियाने से पहले उस जूते को चार दिनों तक पानी में भीगों कर रख दो...इसके बाद किसी के सिर पर चढ़ाओ तो अच्छी आवाज करता है....सारे मुहल्ले में तक आवाज फैल जाएगी...खुदा ना खास्ते वहां फिल्म प्रोड्यूसर मौजूद हो तो जूतियाने की आवाज को बैकग्राउंड म्यूजिक तक बना दे....जूतियाने का एक और भी तरीका है...और ये तरीका तो खासा लोकप्रिय है....अगर किसी के सिर पर गिनती के सौ जूते मारने हो तो....निन्यानबे जूते लगाओ और फिर गिनती ही भूल जाओ...फिर गिनती एक से शुरु करो...और फिर निन्यानबे तक....यानी तब तक लगाते रहो जब तक कि खुद थक कर चूर ना हो जाओ....लेकिन दुख की बात है कि अब जूतों ने पुरानतनपंथी बनने से इनकार कर दिया है....वक्त के साथ साथ जूतों ने भी तरक्की कर ली है....इन पर भी सियासत का रंग चढ़ने लगा है.....अब ये जूते आम आदमी के सिर पर बरसने से इनकार कर देते हैं....लेकिन जब सामने कोई सियासत दान बैठा हो तो तब देखिए इस जूते का रंग....गिरगिट की तरह रंग बदल देता है...उसके सिर पर तनने के लिए मचलने लगता है....और तब तक मचलता रहता है जब तक उस सियासतदाने के सिर पर तन ना जाए...भई वाह...दरअसल जूतों में ये ख्वाईश अचानक नहीं पैदा ली...सियासतदानों के सिर पर चढ़ने की लत उसे टमाटर और अंडों से लगी...जब टमाटर और अंडे नेताजी के मुंह पर फूटकर शहीद हो जाते हैं...तो वो क्यों नहीं...बस ये जलन ही जूतों को महत्वकांक्षी बना दिया....आज जूता अपने पूर्वज जूतों के मुकाबले ज्यादा ऊंचाई पर है....उसकी की औकात बस पूछिए मत....जबसे इराकी पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने जूते को बुश महोदय के महमंड पर सवार कराया है तब से उसकी तबियत कुछ ज्यादा ही रंगीन हो चली है....उसे अपनी प्रतिभा का ज्ञान हो चुका है...दुनिया जीतने की ख्वाईश पैदा हुई तो चीन जा पहुंचा...और फिर भारत के भी फेरे लगा लिये...पहले पी चिदंबरम इसके लपेटे में आए...उन पर बरसा...फिर नवीन जिंदल..फिर येदियुरप्पा....और अब जनार्दन द्विवेदी साहब के सिर पर तन कर खुद को धन्य मान रहा है....पर जूता भाई हमें मत समझाना...हम भी कुछ घाघ किस्म के पत्रकार है....हम जानते हैं कि ख्वाइशे कभी नहीं मरा करती...और तू तो महत्वकांक्षी हो गया है...और अब किसी और के सिर की मरम्मत करने के लिए सोच रहा होगा
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