नक्सलवाद तेजी से फल फूल रहा है...अपने ही देश के लोग लोकतंत्र को चुनौती दे रहे हैं....कामरेड माओ के सिद्धांत को मानने वाले इन लोगों के मुताबिक राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से निकलती है....यही वजह है कि इस सिद्धांत को जिंदा रखने के लिए जब तब इंसानी बलि भी ली जाती है...ये नक्सलियों की बढ़ती ताकत नहीं तो और क्या है....जिसके आगे सारा तंत्र बेबस हो जाता है....वे जब चाहे...तब सिस्टम की धज्जियां उड़ा देते हैं....बेकसूर लोगों को मौत की नींद सुला देते हैं....देश की संप्रभुता को चुनौती देने वाली इन ताकतों के हाथ विदेशी ताकतों से भी मिले होते हैं..वे कहते हैं कि देश में गरीबी है...अन्याय है और गैरबराबरी है....इसलिए देश को लाल क्रांति की जरूरत है....इसके लिए लोगों का खून बहता हो तो बहे....ताज्जुब तब और होता है जब,.गरीबी, बीमारी और भूखमरी को ढाल बनाए इन हाथों को एक खास तरह के बुद्धिजीवियों का समर्थन भी मिल जाता है...उनके पक्ष में लोकतंत्र के प्रहरियों के बीच से ही कई आवाजें उठने लगती है....लेकिन सच्चाई यही है कि नक्सली लोकतंत्रिक भारत के लिए पूरी तरह खतरा बन चुके हैं...देश अपने ही भीतरी राज्यों में छापामार युद्ध झेलने को मजबूर है....पिछले साल नक्सलियों ने कई राज्यों में हिंसा का तांडव मचाया...सिर्फ अप्रैल महीने में ही पांच राज्यों में 16 जगहों पर हमले किए गए...इसके बाद भी ये तांडव रुका नहीं...दंतेवाड़ा में पुलिस को निशाना बनाकर नक्सलियों ने ये दिखा दिया कि उनकी रणनीति, हथियार और मारक क्षमता पहले से बेहतर हुई है...सबसे बड़ी बात...नक्सली देश के ज्यादातर राज्यों में अपनी पहुंच बना चुके हैं...साल 2004 में दो नक्सली गुटों एमसीसी और पीपुल्स वार ग्रुप के भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी माओवादी में विलय होने के बाद वे देश के करीब एक तिहाई हिस्से में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं..देश का 92 हजार किलोमीटर का इलाका नक्सली प्रभाव क्षेत्र में आता है...जिसे रेड कॉरिडोर कहा जाता है...223 जिलों में नक्सलियों की पैठ की बात सरकार भी मान चुकी है...आज देश के 14 राज्यों में नक्सवाद की लाल धारा बह रही है...लेकिन उन्हें रोकने में शासन पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है....अब तो कहा ये भी जाता है कि उनकी सांठगांठ पाकिस्तान के आईएसआई और दूसरे संगठनों से हो चुकी है...इस कारण वे पहले से और ज्यादा उग्र हो गए हैं.... उनके पास आधुनिक हथियार है...उनकी ताकत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है...पिछले तीन सालों के दौरान नक्सलियों ने दो हजार से ज्यादा लोगों की जानें ले ली है....पिछले साल नक्सली हिंसा में 877 आम नागरिकों की मौत हुई...जो पिछले दो सालों की तुलना में काफी ज्यादा है...जाहिर है इसमें हमेशा की तरह इसका खामियाजा आम लोगों को ही भुगतना पड़ता है....बहरहाल नक्सलियों के हौसले बुलंद है...वो बार एक नई ताकत के साथ हमला करते हैं....और सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती...
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