वैष्णव जन तेने कहिए पीर पराई जान रे....ये मेरा प्रिय भजन है....जब तक जीवित रहा...इसे आत्मसात करता रहा....मुझे खुशी है कि मेरी मौत के बाद भी लोग इसे भूले नहीं है....आपको मेरी आवाज सुनकर ताज्जुब हो रहा होगा.....मैं महात्मा गांधी हूं....मोहनदास करमचंद गांधी वल्द करमचंद गांधी....दुनिया वाले प्यार से मुझे बापू बुलाते हैं.....वैसे रविंद्रनाथ टैगोर ने सबसे पहले मेरा नाम दिया था महात्मा...बाद में लोग भी मुझे महात्मा गांधी कहने लगे....प्यारे देशवासियों आज मेरी शहादत के 63 साल गुजर गए...लोग मेरी मौत को शहादत क्यों कहते हैं...अभी तक मुझे ये समझ में नहीं आया...लेकिन फिर भी इस शब्द का इस्तेमाल मुझे इसलिए करना पड़ रहा है कि क्योंकि ज्यादातर लोग मानते हैं कि मैं अपने कर्तव्य के बलिवेदी पर कुर्बान हुआ हूं....खैर आपका सोचना कितना सही है...इस बारे में मैं गहराई से जाना नहीं चाहता....मैं तो अपनी मौत के 63 साल बाद आपसे कुछ कहने आया हूं...पता नहीं आप मेरी बातों को कितना गंभीरता से लीजिएगा...कुछ बातें ऐसी भी होती हैं...जिसपर वक्त का धूल नहीं जमता...बल्कि वो हजारों साल बाद भी नूर की तरह चमकती रहती है...आज भी मैं आपसे कोई नई बात कहने नहीं जा रहा हूं....बल्कि पुरानी कही गई बातों को ही फिर से दुहरा रहा हूं......आज पूरा देश महंगाई, भ्रष्टाचार और भुखमरी से त्रस्त है....गरीब पहले से और गरीब होता जा रहा है...पूरी दुनिया बाजारवाद की गंभीर प्रसव पीड़ा से जूझ रही है....अपना देश भारत भी उन्हीं राहों पर निकल पड़ा है.....अगर आप मेरी बातों को ध्यान रखते तो शायद देश आज इस हालत में नहीं होता...भ्रष्टाचार और महंगाई तो इससे दूर ही रहती....मैं चिंता में डूबा हूं....पूरी दुनिया में आज दो अलग अलग तरह की दौड़ हो रही है...एक दौड़ उन लोगों की है जो संपन्न हैं...पर कुछ और पाने की लालसा लिए दौड़ में लगे हैं...दूसरी दौड़ उन लोगों की है जो दो जून की रोटी के लिए अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जूझ रहे हैं....मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आप भी उस दौड़ में लग चुके हैं....मुझे लगता है शायद आप मेरे उस मंत्र को भूल गए होंगे...जो मैने आपको दिया था ...
.जब भी कोई काम हाथ में लो..ये ध्यान रखो कि इससे सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति को क्या लाभ होगा...
लेकिन आज कौन सुनता है...कौन याद रखता है मेरी बातों को....सब अपने ही धुन में लगे पड़े हैं....शायद नतीजों से अंजान...उन्हें नहीं पता कि बाजारवाद का अंत कितना खतरनाक होता है...समाज के एक हिस्से को कुचलना भले ही आसान हो...पर याद रखो...उनकी आह तुम्हारे हिस्से की रोटी भी एक दिन छिन लेगी.... आप क्यों नहीं अपनाते मेरे ये सिद्धांत...बहुजन सुखाय, बहुजन हिताय...यानी सर्वोदय का सिद्धांत...जीओ और जीने दो...फिर देखों जिंदगी की राह कितना आसान हो जाती है....एक बात मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मैं भौतिक समृद्धि के खिलाफ नहीं हूं...और ना मैं मशीनों के इस्तेमाल को नकारता हूं...मैं तो बस इतना ही चाहता हूं कि मशीनों का दास मत बनो...मशीनें तुम्हारे लिए होनी चाहिए ना कि तुम मशीनों के लिए...शायद तुम्हें याद हो...एक बार मैंने कहा था कि
आर्थिक समानता अहिंसक स्वतंत्रता की असली चाबी है...शासन की अहिंसक प्रणाली कायम करना तब तक संभव नहीं है...जब तक अमीरों और करोड़ों भूखे लोगों के बीच की खाई बनी रहेगी
शायद तुमने इस बात का मतलब दूसरा ही निकाल लिया...तुमने तो उस खाई को और बढ़ा दिया है....गांवों के हालात तो और खराब होते जा रहे हैं...गांवों के लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं....शहर गरीबों को आसरा देने से इनकार कर रहा है....भूख से लोग बिलबिला रहे हैं....अमीर पहले से और अमीर हो गया है....क्या मुझे इतना भी हक नहीं है कि मैं तुमसे ये पूछ सकूं....क्यों मेरे सपने के भारत को बर्बादी के कगार पर ले जाने में तुले हो...
nice thought.......ye sach hai........jo ap gandhi ji k madhyam se sbko batana chah rae ho.......n jaruri bhi hai har koi ise pade n janane ki kosis kare......
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