Monday, June 28, 2010

सिब्बल की अनोखी पहल


आजादी सपनों की...आजादी सोचने की...आजादी बोलने की...और आजादी लिखने की....तो फिर पढ़ने की आजादी क्यों नहीं....पढ़ाई क्यों है सब्जेक्ट्स के गुलाम....सब्जेक्ट्स में क्यूं बंटा है स्ट्रीम....और फिर, मुझे केमिस्ट्री के साथ हिंदी पढ़ना पसंद है तो क्यों कतर दिए जाते हैं मेरी पसंद के पंख....क्यों चढ़ा दी जाती है मेरी पसंदों की बलि....क्यों कर दिए जाते हैं मजबूर...नापसंद को भी पसंद बनाने के लिए.....ये कुछ सवाल है...सवाल में दम है...और सवाल में ही सवाल है...सवाल आजादी का है...सवाल अपनी अपनी पसंद का है...सवाल अपने अपने इंटरेस्ट का है....माना इंजीनियर बनने के लिए फिजिक्स कैमिस्ट्री के साथ मैथेमैटिक्स की पढ़ाई बेहद जरूरी है....पर सच्चाई ये भी है कि सुकून के लिए साहित्य भी उतना ही जरूरी है....जहां बात नापसंदगी की हो तो छींके तो आएगी ही....जोर जबरदस्ती से इंजीनियर तो बनाया जा सकता है....पर नापसंदी के कांटे भी जीवन भर चुभते रहते हैं....सब्जेक्ट्स कहीं बोझ ना बन जाए...इसलिए समय के साथ बदलाव भी जरूरी है...वाकई मानव संसाधन मंत्रालय की पहल अनोखी है..मानव संसाधन विकास मंत्रालय दसवीं पास छात्रों को आर्ट्स, कॉमर्स और साइंस के विषयों को एक साथ अपनाने की छूट देने पर विचार कर रहा है। इस संबंध में मंत्रालय ने स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के संयुक्त सचिव एससी कुंतिया की अध्यक्षता में दस सदस्यों की एक समिति भी बनाई है। समिति गठित की है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के अध्यक्ष विनीत जोशी को समिति का संयोजक बनाया गया। यह समिति हायर सेकंडरी और ग्रेजुएट स्तर पर छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों के विषय लेने की अनुमति देने के संबंध में अपना सुझाव देगी..यह समिति विभिन्न बोर्ड से उत्तीर्ण हुए छात्रों की तुलना करने की प्रक्रिया के बारे में भी सुझाव देगी। मामले में, विशेषज्ञों का मानना है कि इस पद्धति को लागू करने पर विद्यार्थियों के मूल्यांकन और विभिन्न बोडरें की परीक्षा प्रणाली में काफी विसंगतियां हैं। ऐसे में यह समिति विभिन्न बोर्ड की परीक्षा प्रणाली का अध्ययन करेगी फिर अंतर बोर्ड के तुलनीय परिणामों की प्रक्रिया के बारे में सुझाव देगी। .इतिहास और वर्तमान दोनों को एक साथ पलटने की तैयारी चल रही है...समिति गठित कर दी गई है...इंतजार है तो बस समिति के आए रिपोर्ट्स का...जो कि सितंबर तक आने की उम्मीद जताई जा रही है....समय सीमा भी वही तय की गई है....निश्चित ही कपिल सिब्बल की प्रयास सराहनीय है....उम्मीद है कि वो भी जल्द आ जाएगी....और मंत्रालय की सोच आकार भी ले लेगी....तो तैयार रहिए साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स का एक साथ मजा उठाने के लिए

Saturday, June 26, 2010

ये पब्लिक है...सब जानती है

विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए हमें आपका सहयोग चाहिए..शनिवार की सुबह जब आंखे खुली तो अखबारों में सबसे पहले इसी विज्ञापन पर नजर जा ठहरी...तेल की कीमतों में आग लगाने के बाद अब सरकार लोगों से सहयोग मांग रही है....इस विज्ञापन में पड़ोसी देशों का आंकड़ा पेश कर देश के आम आदमी को आईना दिखाने की कोशिश की गई है....पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर से जारी इस विज्ञापन में सरकार खुद को बचाती नजर आई...हवाला दिया गया पड़ोसी देशों का...और ये भी कि कीमते बढ़ने के बावजूद एलपीजी पर 225 रुपये और मिट्टी तेल पर 16 रुपये की सब्सिडी दी जा रही है.... ये दिखाने की कोशिश की गई है कि देश में एलपीजी और केरोसीन की कीमत पड़ोसी देशों के मुकाबले काफी कम है....पड़ोसी देशों के मुकाबले यहां एलपीजी और मिट्टी तेल की कीमत कुछ भी नहीं....पर ये पूरा सच नहीं है....इस विज्ञापन में पेट्रोल और डीजल की कीमतों के बारे में कहीं भी जिक्र नहीं......क्योंकि सरकार को भी पता है कि पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देश में...भले ही एलपीजी और केरोसिन की कीमते भारत के मुकाबले ज्यादा हो...लेकिन पेट्रोल और डीजल की कीमतें वहां काफी कम हैं..भारत में जहां पेट्रोल की कीमत बढ़कर 51.43 रुपए प्रति लीटर हो गई है...वहीं पाकिस्तान में मौजूदा कीमत 39.70 और श्रीलंका में 25.76 रुपये प्रति लीटर है....यानी कि भारत में पेट्रोल-डीजल की मौजूदा कीमत पाकिस्तान और नेपाल से काफी ज्यादा है....सरकार इसी बात को साफ छुपा गई है...ताकि लोगों को लगे कि उसने पेट्रो पदार्थों की कीमतों में इजाफा कर कोई गुनाह नहीं किया है...सवाल ये है कि जब पाकिस्तान और नेपाल जैसे देश इतनी कम कीमत पर लोगों को पेट्रोल-डीजल मुहैया करा रहे हैं तो फिर भारत क्यों नहीं...जिस अर्थव्यवस्था को बचाने की दुहाई दी जा रही है...क्या वो हमारे पड़ोसी देशों से भी कमजोर हो गई है....जाहिर है कहीं ना कहीं सरकार की नीति में ही खोट है....हमारी तो यही गुजारिश है कि आम आदमी के साथ रहने का दावा करने वाली यूपीए सरकार कम से कम जनता को तो बेवकूफ नहीं बनाए...क्योंकि ये पब्लिक सब जानती है

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