Tuesday, August 23, 2011

गांधी की विरासत को मिल गई पहचान

ये कौन जानता था कि आजादी के 64 साल बाद भी गांधी टोपी का जादू ऐसा चलेगा...कि हर कोई इसे देशभक्ति का प्रतीकचिन्ह मानने लगेगा....कल तक जो गांधी टोपी सिर्फ नेताओं के सिर पर सजती थी......आज वही गांधी टोपी हर भारतवासी के लिए ताज बन चुकी है...जिस गांधी टोपी को देख युवापीढ़ी बिदकती थी....आज उस गांधी टोपी को बनाने के लिए युवा दूसरों को गुर सिखा रहे हैं....जी हां फैशन से बाहर हो चुकी गांधी टोपी की शान आज अन्ना ने फिर लौटा दी है....74 साल के इस बुजुर्ग ने दिखा दिया है कि भले ही गांधी आज हमारे बीच नहीं हो...लेकिन उनकी महत्वपूर्ण विरासत को आज भी लोग दिलों में संजो कर रखे हैं....एक तरह से अन्ना ने गांधी टोपी की नई परिभाषा दी है...और उसे राजनीतिक सीमाओं के पार पहुंचा दिया है....युवापीढ़ी भी अब समझने लगी है...कि गांधी जी के विचारों को अगर करीब से जानना है...तो सिर पर गांधी टोपी तो सजानी ही होगी....वैसे गांधी टोपी का इतिहास काफी पुराना है....इस तरह की टोपी पहनने का चलन गांधी जी के जन्म से भी पहले का था....लेकिन गांधी जी ने इसे नई पहचान दी...इतिहास बताता है कि जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में वकालत करते थे...तब अंग्रेजों ने एक नियम बना रखा था....कि हर भारतीय को अपनी फिंगरप्रिंट्स देने होंगे....गांधी जी इस नियम का विरोध करने लगे और उन्होंने इसके लिए अपनी गिरफ्तारी दे दी...जेल में भी गांधी जी को भेदभाव से दो चार होना पड़ा...क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीय कैदियों के लिए एक विशेष तरह की टोपी पहनने का आदेश दे रखा था। ..आगे चलकर गांधी जी ने इस टोपी को अपने सिर पर धारण कर लिया....ताकि आगे चलकर अपने साथ हो रहे भेदभाव को याद किया जा सके....यही टोपी गांधी टोपी के तौर पर जानी गई....हालांकि बाद में गांधी जी ने इस टोपी को कभी नहीं पहना...लेकिन देश के नेताओं और सत्याग्रहियों ने इस टोपी को आसानी से अपना लिया....कांग्रेस ने इस टोपी को गांधीजी के साथ जोड़ा और अपने कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करना शुरु कर दिया...जो बाद में एकता और राष्ट्रीयता की पहचान बन गई....लेकिन आजादी के बाद धीरे धीरे ये टोपी लोगों से दूर होती गई...फैशन ने भी इस टोपी को देश की जनमानस से काफी दूर कर दिया... सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस पर ही ये टोपी नेताओं के सिर पर ही दिखाई पड़ने लगी...लेकिन अन्ना की वजह से आज लाखों लोग इस टोपी को पहनकर सड़कों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे है

क्रांति का गवाह रामलीला मैदान


जहां से अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ क्रांति का बिगूल फूंक रहे हैं....उस रामलीला मैदान का इतिहास बेहद पुराना है....इसी मैदान से आजादी की लड़ाई लड़ी गई...और इसी मैदान से जेपी की संपूर्ण क्रांति का शंखनाद हुआ...इसी मैदान से जय जवान जय किसान का नारा लगा....तो इसी मैदान से कहा गया सिंहासन खाली करो कि जनता आती है... रामलीला मैदान...जहां पर पूरे देश की निगाहें टिकी है....जहां से अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ हुंकार भर रहे हैं....हां से क्रांति की नई इबारत लिखी जा रही है....आज वही रामलीला मैदान इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के लिए एक बार फिर से तैयार है....यहां पर जुटे हजारों हजारों की तादात में बच्चे, युवा और बुजुर्ग इस इतिहास का गवाह बन रहे हैं......इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी से लेकर जयप्रकाश नरायण तक ने आंदोलन का बिगुल इस मैदान पर फूंका....128  के हो चुके रामलीला मैदान में पहली बार 1883 में अंग्रेजों ने अपने सैनिकों के लिए कैंप तैयार करवाया था...इसके बाद पुरानी दिल्ली के लोगों ने इस मैदान पर रामलीलाओं का आयोजन करना शुरु कर दिया...जिसके बाद इसकी पहचान रामलीला मैदान के तौर पर स्थापित हुई....अजमेरी गेट से लेकर तुर्कमान गेट के बीच 10 एकड़ में फैले रामलीला मैदान में एक लाख लोग खड़े हो सकते हैं....दिसबंर 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर मुद्दे को लेकर सत्याग्रह किया....देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी 1956 और 1957 में इसी मैदान पर एक विशाल जनसभा की थी....28 जनवरी 1961 को ब्रिटन की महारानी एलिजाबेथ ने रामलीला मैदान में ही एक जनसभा को संबोधित किया था....फिर 26 जनवरी 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौजदूगी में लता मांगेशकर ने ऐ मेरे वतन के लोगों-- गीत गाकर नेहरू जी आंखे नम कर दी थी.... इसी तरह 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग में तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा देकर देश के वीर जवानों के साथ पहली बार किसानों का भी मान बढ़ाया था....1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के निर्माण और पाकिस्तान के खिलाफ जंग जीतने के बाद जश्न मनाने के लिए एक बड़ी रैली की....25 जून 1975...को ये मैदान जेपी आंदोलन का गवाह बना....उन्होंने उस वक्त जनता को संबोधित करते हुए रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तिया दोहराई...सिंहासन खाली करो कि जनता आती है....जिसके बाद डरी सहमी इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया था...इसके बाद फरवरी 1977 में विपक्षी पार्टियों ने एक बार फिर इसी मैदान को अपनी आवाज जनता तक पहुंचाने के लिए चुना...जिसमें जगजीवन राम, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी और चौधरी चरण सिंह जैसे दिग्गज एक साथ मंच पर नजर आए...इसके बाद राजनीतिक दलों सहित कई संगठनों ने रामलीला मैदान पर रैलियां और कार्यक्रम करते आए हैं....ये वही रामलीला मैदान है....जहां योगगुरु बाबा रामदेव ने काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगूल फूंका था...आज वही राम लीला मैदान में अन्ना अनशन कर एक बार फिर इतिहास दोहरा रहे हैं 

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