Monday, December 13, 2010

इस खेल के भी सरताज

 ये खेल सदियों पुराना है । लेकिन बीते दशक से इस खेल में रवानीगी आई है । चमक बढ़ी है....दौलत बढ़ी है। खास बात, ये खेल पर्दे के पीछे से खेला जाता है। टेबल के नीचे से अंजाम दिया जाता है। मेहनत और ईमानदारी इससे दूर भागती है। बेगैरत और फरेब इसका संविधान है। चलिए, तो पर्दे के पीछे खेले जाने वाले इस खेल से पर्दा उठा ही देते हैं । जी हां हम बात कर रहे हैं देश में बढ़ रहे भ्रष्टाटाचार और रिश्वतखोरी की। हमारे देश में भ्रष्टाचार गरीब के हिस्से को डकार जाता है। और रिश्वतखोरी उस हिस्से को विधिसम्मत बना देता है। अब सवाल ये है कि लोकतंत्र को खोखला करने वाली इन दोनों बीमारियों को पनाह कौन देता है। ..जाहिर है आपके दिमाग में अलग-अलग शख्सियतों की तस्वीर उभरेगीं। .उनमें नौकरशाह भी होंगे और आपके जनप्रतिनिधी भी। .समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाइए। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को कहना पड़ गया था, रुपये का मात्र पंद्रह पैसे ही आम आदमी तक पहुंच पाता है। .ये कहना गलत नहीं होगा कि हमारा देश भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है। .चारा घोटाला से लेकर कफन घोटाला तक, भूसा घोटाला से लेकर खाद घोटाला तक। लेकिन ये उदाहरण पुराने पड़ चुके हैं। जमाना बदल चुका है। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के तरीके भी बदल गए.। अब इसकी कोख से अखंड प्रताप सिंह, नीरा यादव, अरविंद जोशी और टीनू जोशी जैसे नौकरशाह पैदा होते हैं। अपने ही देश को खोखला करने वाले रविइंदर सिंह जैसे गद्दार पैदा लेते हैं। जनता की गाढ़ी कमाई लूटने वाले ए राजा पैदा होते है। खेल में खेल करने वाले कालमाडी पैदा होते हैं। अब घोटाला नहीं महाघोटाला होता है। कॉमनवेल्थ महाघोटाला, टूजी स्पेक्ट्रम महाघोटाला, लवासा महाघोटाला, आदर्श सोसायटी महाघोटाला, खाद्यान्न महाघोटाला, आवास ऋण घोटाला। करो तो कुछ बड़ा करो, शायद यही भ्रष्टाचारियों का टैग लाइन है। अब बात जरा इससे हटकर। 9 दिसंबर को पूरी दुनिया ने विश्व भ्रष्टाचार निरोधक दिवस मनाया। इस मौके पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट आती है, उसमें भारत को दुनिया के सबसे ज्यादा भ्रष्ट देश करार दिया गया है। खास बात ये कि हमारे नेता इसमें सबसे आगे हैं.। इसके बाद नौकरशाह का नंबर आता है, जिसमें पुलिस भी शामिल है। और आखिर में भ्रष्टाचार की हद पर मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी की टिप्पणी- आखिर अदालत से क्यों छूट जाते हैं चुनाव लड़ने वाले अपराधी...और जीवन भर क्यों सड़ते रह जाते हैं हमारे देश में मौजूद ढाई करोड़ कैदी। www.facebook.com

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