Tuesday, August 23, 2011

गांधी की विरासत को मिल गई पहचान

ये कौन जानता था कि आजादी के 64 साल बाद भी गांधी टोपी का जादू ऐसा चलेगा...कि हर कोई इसे देशभक्ति का प्रतीकचिन्ह मानने लगेगा....कल तक जो गांधी टोपी सिर्फ नेताओं के सिर पर सजती थी......आज वही गांधी टोपी हर भारतवासी के लिए ताज बन चुकी है...जिस गांधी टोपी को देख युवापीढ़ी बिदकती थी....आज उस गांधी टोपी को बनाने के लिए युवा दूसरों को गुर सिखा रहे हैं....जी हां फैशन से बाहर हो चुकी गांधी टोपी की शान आज अन्ना ने फिर लौटा दी है....74 साल के इस बुजुर्ग ने दिखा दिया है कि भले ही गांधी आज हमारे बीच नहीं हो...लेकिन उनकी महत्वपूर्ण विरासत को आज भी लोग दिलों में संजो कर रखे हैं....एक तरह से अन्ना ने गांधी टोपी की नई परिभाषा दी है...और उसे राजनीतिक सीमाओं के पार पहुंचा दिया है....युवापीढ़ी भी अब समझने लगी है...कि गांधी जी के विचारों को अगर करीब से जानना है...तो सिर पर गांधी टोपी तो सजानी ही होगी....वैसे गांधी टोपी का इतिहास काफी पुराना है....इस तरह की टोपी पहनने का चलन गांधी जी के जन्म से भी पहले का था....लेकिन गांधी जी ने इसे नई पहचान दी...इतिहास बताता है कि जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में वकालत करते थे...तब अंग्रेजों ने एक नियम बना रखा था....कि हर भारतीय को अपनी फिंगरप्रिंट्स देने होंगे....गांधी जी इस नियम का विरोध करने लगे और उन्होंने इसके लिए अपनी गिरफ्तारी दे दी...जेल में भी गांधी जी को भेदभाव से दो चार होना पड़ा...क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीय कैदियों के लिए एक विशेष तरह की टोपी पहनने का आदेश दे रखा था। ..आगे चलकर गांधी जी ने इस टोपी को अपने सिर पर धारण कर लिया....ताकि आगे चलकर अपने साथ हो रहे भेदभाव को याद किया जा सके....यही टोपी गांधी टोपी के तौर पर जानी गई....हालांकि बाद में गांधी जी ने इस टोपी को कभी नहीं पहना...लेकिन देश के नेताओं और सत्याग्रहियों ने इस टोपी को आसानी से अपना लिया....कांग्रेस ने इस टोपी को गांधीजी के साथ जोड़ा और अपने कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करना शुरु कर दिया...जो बाद में एकता और राष्ट्रीयता की पहचान बन गई....लेकिन आजादी के बाद धीरे धीरे ये टोपी लोगों से दूर होती गई...फैशन ने भी इस टोपी को देश की जनमानस से काफी दूर कर दिया... सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस पर ही ये टोपी नेताओं के सिर पर ही दिखाई पड़ने लगी...लेकिन अन्ना की वजह से आज लाखों लोग इस टोपी को पहनकर सड़कों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे है

क्रांति का गवाह रामलीला मैदान


जहां से अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ क्रांति का बिगूल फूंक रहे हैं....उस रामलीला मैदान का इतिहास बेहद पुराना है....इसी मैदान से आजादी की लड़ाई लड़ी गई...और इसी मैदान से जेपी की संपूर्ण क्रांति का शंखनाद हुआ...इसी मैदान से जय जवान जय किसान का नारा लगा....तो इसी मैदान से कहा गया सिंहासन खाली करो कि जनता आती है... रामलीला मैदान...जहां पर पूरे देश की निगाहें टिकी है....जहां से अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ हुंकार भर रहे हैं....हां से क्रांति की नई इबारत लिखी जा रही है....आज वही रामलीला मैदान इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के लिए एक बार फिर से तैयार है....यहां पर जुटे हजारों हजारों की तादात में बच्चे, युवा और बुजुर्ग इस इतिहास का गवाह बन रहे हैं......इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी से लेकर जयप्रकाश नरायण तक ने आंदोलन का बिगुल इस मैदान पर फूंका....128  के हो चुके रामलीला मैदान में पहली बार 1883 में अंग्रेजों ने अपने सैनिकों के लिए कैंप तैयार करवाया था...इसके बाद पुरानी दिल्ली के लोगों ने इस मैदान पर रामलीलाओं का आयोजन करना शुरु कर दिया...जिसके बाद इसकी पहचान रामलीला मैदान के तौर पर स्थापित हुई....अजमेरी गेट से लेकर तुर्कमान गेट के बीच 10 एकड़ में फैले रामलीला मैदान में एक लाख लोग खड़े हो सकते हैं....दिसबंर 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर मुद्दे को लेकर सत्याग्रह किया....देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी 1956 और 1957 में इसी मैदान पर एक विशाल जनसभा की थी....28 जनवरी 1961 को ब्रिटन की महारानी एलिजाबेथ ने रामलीला मैदान में ही एक जनसभा को संबोधित किया था....फिर 26 जनवरी 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौजदूगी में लता मांगेशकर ने ऐ मेरे वतन के लोगों-- गीत गाकर नेहरू जी आंखे नम कर दी थी.... इसी तरह 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग में तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा देकर देश के वीर जवानों के साथ पहली बार किसानों का भी मान बढ़ाया था....1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के निर्माण और पाकिस्तान के खिलाफ जंग जीतने के बाद जश्न मनाने के लिए एक बड़ी रैली की....25 जून 1975...को ये मैदान जेपी आंदोलन का गवाह बना....उन्होंने उस वक्त जनता को संबोधित करते हुए रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तिया दोहराई...सिंहासन खाली करो कि जनता आती है....जिसके बाद डरी सहमी इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया था...इसके बाद फरवरी 1977 में विपक्षी पार्टियों ने एक बार फिर इसी मैदान को अपनी आवाज जनता तक पहुंचाने के लिए चुना...जिसमें जगजीवन राम, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी और चौधरी चरण सिंह जैसे दिग्गज एक साथ मंच पर नजर आए...इसके बाद राजनीतिक दलों सहित कई संगठनों ने रामलीला मैदान पर रैलियां और कार्यक्रम करते आए हैं....ये वही रामलीला मैदान है....जहां योगगुरु बाबा रामदेव ने काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगूल फूंका था...आज वही राम लीला मैदान में अन्ना अनशन कर एक बार फिर इतिहास दोहरा रहे हैं 

Wednesday, June 29, 2011

मिट गई चवन्नी

महंगाई की चुभन क्या होती है....ये कोई उनस पूछे...जिन्होंने चवन्नी की दुनिया देखी है....देखी है चवन्नी की बड़ी से बड़ी औकात...भले ही जेब में आज 100 रुपये का नोट हो...लेकिन तब की चवन्नी के आगे इस 100 रुपये की खुशियां कुछ भी नहीं.... महंगाई की मार से चवन्नी इस तरह बेबस हो जाएगी...किसी ने सोचा तक नहीं था....अब तो कहावतों में ही चवन्नी का जिक्र बाकी रह जाएगा। 30 जून को चवन्नी जब विदा लेगी...तो अपने पीछे ढेर सारी कहानियां और दिल में उठते उन टीसों को भी पीछे छोड़ जाएगी...जब चवन्नी मंहगाई की आंच में तिल तिल कर अपनी अंतिम सांसे गिन रही थी...मंहगाई की मार और सरकार के फैसलों से चवन्नी की छोटी बहनें पहले ही काल के गर्भ में समा चुकी हैं....उनमें एक पैसे, दो पैसे, पांच पैसे, दस पैसे और बीस पैसे के सिक्के शामिल हैं...अब बारी इसकी है...बुरे लोगों को भले ही चवन्नी कहा जाता हो....लेकिन हकीकत में चवन्नी थी बड़ी अनमोल....एक चवन्नी में हफ्तेभर का गोला...या छटाक भर मूंगफली बड़ी आसानी से मिल जाती थी...भले ही यकीन ना आए...लेकिन कई शहरों में तो सिनेमा का टिकट भी चवन्नी में ही मिल जाया करता था.....लेकिन आज तो बस पूछिए ही मत...महंगाई बढ़ने के साथ साथ पैसे की कीमत भी घटती चली गई....चवन्नी ही क्या यहां तक की अठन्नी भी अब ढूंढे नहीं मिलती...महानगरों में तो ये कब की गायब हो चुकी है...आज बाजार में भी ना तो 25 पैसे में कुछ मिलता है और ना 50 पैसे में....यानी जिस तरह चवन्नी को रुखसत किया जा रहा है...जल्द ही वो दिन भी आएगा जब बाजार से अठन्नी यानी 50 पैसे को भी बेआबरू किया जाएगा....जानकारों की माने तो किसी भी सिक्के को बाजार में लाने और हटाने से पहले आरबीआई का करंसी डिविजन मार्केट पर नजर रखता है...और मार्केट से मिलने वाली फीडबैक के आधार पर ही फैसला लिया जाता है...महंगाई बढ़ने की वजह से जिन सिक्कों की जरूरत खत्म हो जाती है...उन्हें मार्केट से हटा दिया जाता है...लेकिन अगर कोई चाहे तो हटाए गए सिक्कों के बदले चालू करेंसी रिजर्व बैंक से ले सकता है...लेकिन भला कौन चवन्नी की इस अनमोल विरासत को अपने से दूर करना चाहेगा....चवन्नी पहले भी अनमोल थी...अब भी है...और आने वाले वक्त में इसका जलवा बरकरार रहेगा...कीमत के रुप में ना सही...एक अनमोल विरासत के रुप में...मशहूर शायर आफताब लखनवी ने चवन्नी के कसीदे कुछ इस काढ़े थे....
मेरे वालिद अपना बचपन याद करके रो दिए...कितनी सस्ती थी नमकीन चार आने की...पूरा बोतल मेरा भाई तन्हा ही पी गया...मैने मजबूरी में लस्सी भर के पैमाने में पी

Tuesday, June 7, 2011

सियासतबाज हुआ जूता

धन्य है वो जूता...जो पैरों से निकलकर किसी के सिर पर तन जाए...लेकिन ऐसी किस्मत सब जूतों को नसीब नहीं होती....ऐसे जूते तो बिरले ही बनते हैं....अब जरा सोचिए कितनी खुशनसीब होगी वो फैक्टरी...जिसने अपनी कोख से सिर पर सवार होने वाले जूते का जन्म दिया....धन्य तो वो ब्रांड भी है...जिसने जूते की इस खास प्रजाति की खोज की....ऐसे जूते आम नहीं होते...भले ही ये आम आदमी के पैरों की शोभा बढ़ाते हों....लेकिन अगर सिर पर तनने की बात आए तो आम आदमी को धोखा दे देते हैं.....क्योंकि ये खास के सिर पर चलना कुझ ज्यादा पसंद करते हैं....जैसे जूता ना हो गेंदे का फूल हो....अरे ये भी कोई बात हुई....आम आदमी से दगाबाजी और खास के सिर से मुहब्बत...ये कहां का इंसाफ है...लेकिन इसमें जूते का कसूर भी नहीं...मानव सभ्यता के इतिहास से ही इंसान ने जूते को सिर पर चढ़ा रखा है...बात बात में जूते का जिक्र...जैसे जूता ना होकर कोई बम बारूद हो....मैं तो उसके साथ जूते से पेश आउँगा....मैं तो भरी पंचायत में उसे जूते से जलील करुंगा...और ज्यादा चूं चापड़ करोगे तो जूता खाओगे....इस तरह के जुमलों ने ही जूतों को महान बना दिया....वैसे अपने देश में जूतियाने का अजीब अजीब तरीके भरे हैं....कहा जाता है कि अगर किसी को जूतियाना हो तो...जूतियाने से पहले उस जूते को चार दिनों तक पानी में भीगों कर रख दो...इसके बाद किसी के सिर पर चढ़ाओ तो अच्छी आवाज करता है....सारे मुहल्ले में तक आवाज फैल जाएगी...खुदा ना खास्ते वहां फिल्म प्रोड्यूसर मौजूद हो तो जूतियाने की आवाज को बैकग्राउंड म्यूजिक तक बना दे....जूतियाने का एक और भी तरीका है...और ये तरीका तो खासा लोकप्रिय है....अगर किसी के सिर पर गिनती के सौ जूते मारने हो तो....निन्यानबे जूते लगाओ और फिर गिनती ही भूल जाओ...फिर गिनती एक से शुरु करो...और फिर निन्यानबे तक....यानी तब तक लगाते रहो जब तक कि खुद थक कर चूर ना हो जाओ....लेकिन दुख की बात है कि अब जूतों ने पुरानतनपंथी बनने से इनकार कर दिया है....वक्त के साथ साथ जूतों ने भी तरक्की कर ली है....इन पर भी सियासत का रंग चढ़ने लगा है.....अब ये जूते आम आदमी के सिर पर बरसने से इनकार कर देते हैं....लेकिन जब सामने कोई सियासत दान बैठा हो तो तब देखिए इस जूते का रंग....गिरगिट की तरह रंग बदल देता है...उसके सिर पर तनने के लिए मचलने लगता है....और तब तक मचलता रहता है जब तक उस सियासतदाने के सिर पर तन ना जाए...भई वाह...दरअसल जूतों में ये ख्वाईश अचानक नहीं पैदा ली...सियासतदानों के सिर पर चढ़ने की लत उसे टमाटर और अंडों से लगी...जब टमाटर और अंडे नेताजी के मुंह पर फूटकर शहीद हो जाते हैं...तो वो क्यों नहीं...बस ये जलन ही जूतों को महत्वकांक्षी बना दिया....आज जूता अपने पूर्वज जूतों के मुकाबले ज्यादा ऊंचाई पर है....उसकी की औकात बस पूछिए मत....जबसे इराकी पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने जूते को बुश महोदय के महमंड पर सवार कराया है तब से उसकी तबियत कुछ ज्यादा ही रंगीन हो चली है....उसे अपनी प्रतिभा का ज्ञान हो चुका है...दुनिया जीतने की ख्वाईश पैदा हुई तो चीन जा पहुंचा...और फिर भारत के भी फेरे लगा लिये...पहले पी चिदंबरम इसके लपेटे में आए...उन पर बरसा...फिर नवीन जिंदल..फिर येदियुरप्पा....और अब जनार्दन द्विवेदी साहब के सिर पर तन कर खुद को धन्य मान रहा है....पर जूता भाई हमें मत समझाना...हम भी कुछ घाघ किस्म के पत्रकार है....हम जानते हैं कि ख्वाइशे कभी नहीं मरा करती...और तू तो महत्वकांक्षी हो गया है...और अब किसी और के सिर की मरम्मत करने के लिए सोच रहा होगा

Saturday, May 14, 2011

वो पांच भूले

पश्चिम बंगाल...देश का एक ऐसा राज्य जो 34 सालों से एक पार्टीतंत्र के कब्जे में रहा...34 सालों से गरीबी, हिंसा और कुशासन से जूझता रहा....लेकिन इस प्रदेश में भी बदलाव का सूरज निकल ही आया। .या यूं कहिए कि लोगों ने जिन सपनों को मरा हुआ मान लिया था...अब वे सपने कुलांचे मारने लगे है....लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ये .जीत किसकी है...राज्य की जनता की...ममता के जादू की...या फिर एक पार्टीतंत्र के खात्मे की.....आज भले ही ममता अपनी जीत पर इतरा रही हों....लेकिन इसके पीछे ना तो उनकी दहाड़,  ना जिद और ना ही उनका कोई करिश्मा है....बल्कि इसके पीछे लेफ्ट के वे 34 साल हैं....जिसने बंगाल को हाशिये पर ला खड़ा किया..इसलिए अगर वे अपनी जीत के लिए किसी को शुक्रिया अदा करती हैं...तो सबसे पहले लेफ्ट का शुक्रिया अदा करें ...दरअसल माकपा ने अपनी 34 साल की इस जिंदगी में एक नहीं कई बुनियादी भूलें की...पहली भूल, राज्य में पार्टी और प्रशासन के बीच भेद का खात्मा...जिसके तहत प्रशासन के नियम कायदे की जगह पार्टी के आदेशों ने ले लिया....दूसरी भूल संस्थाओं और क्लबों के जरिए सामाजिक नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश...इसे दूसरे नजरिए से देखें तो पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आम जनता की रोजमर्रा की जिंदगी में बड़े स्तर पर दखलअंदाजी की...तीसरी भूल,  अपराधियों को खुली छूट देना. और उन्हें पार्टी के लिए अवैध वसूली जैसे कामों में लगाना....चौथी भूल नाकाबिल नेताओं के हाथ में पार्टी की कमान देना, मसलन जिन्हें मार्क्सवाद का ज्ञान नहीं, भाषा की जानकारी नहीं उन्हें भी पार्टी के अखबार, पत्रिकाएँ और टीवी चैनल चलाने का हक दे दिया गया...और तो और जिस विधायक या सांसद की साख पर बट्टा लगा...उन्हें भी अपने पद पर बिठाए रखा गया....और आखिर में पांचवी भूल है राज्य प्रशासन का मानवाधिकारों की रक्षा के प्रति अनदेखी...इसका नतीजा ये हुआ कि लोग अपनी ही अस्मिता और अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष करने लगे....राज्य में जिस तरह से औद्योगिकरण का अंत हुआ....उससे बेरोजगारी बढ़ी, गरीबी उफान पर आ गई....वाममोर्चा की जमीन अधिग्रहण नीति ने लोगों को पार्टी के खिलाफ नजरिया ही बदल दिया... जो सिंगुर और नंदीग्राम में हुआ...उसकी उम्मीद वहां के लोगों को भी नहीं थी....और यही लेफ्ट के ताबूत में अंतिम कील साबित हुई....ममता ने इस मुद्दे को जिस तरह से भुनाया उससे लोगों का भरपूर का समर्थन उन्हें मिला..वो बंगाल की किस्मत बदलने के लिए काफी था...यानी बुद्धदेव भट्टाचार्य के 11 साल और उनकी पार्टी के 34 साल का राज खत्म हो गया...वामपंथियों ने इन 34 सालों में क्या खोया इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बुद्धदेब भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। 

Friday, April 15, 2011

ये दिल्ली है साहेब !

ये दिल्ली है साहेब....यहां चकाचौंध है....आसमान छूती बिल्डिंगें हैं....बड़ी बड़ी कंपनियों के साइनबोर्ड है...सड़क पर दौड़ती गाड़ियां हैं...और....नेताओं के सफेद खद्दर है...लेकिन दिनकर कहते हैं कि यमुना कछार पर बैठी विधवा दिल्ली रोती है....मुगलों की सरपरस्ती के लिए नहीं....इस शहर के अदद रहनुमाओं के लिए....लेकिन कौन समझाए उन्हें....आज की दिल्ली बदल गई है....अब ये दिल्ली सफेद खद्दरवालों की कहलाती है....इसमें अफसोस नहीं, खुशी है...शहर के रहनुमा मिल गए हैं....सिर्फ रहम मिलना बाकी है.....मशहूर कवि जौक को भी बड़ा गुमान था अपनी दिल्ली और दिल्ली की गलियों पर...कह गए...कौन जाए जौक, दिल्ली की ये गलियां छोड़कर....जौक नहीं गए...यहीं रह गए....इन्हीं तंग गलियों में जिंदगी की खुशबू तलाशते....पर अब जौक का जमाना नहीं है...तंग गलियों में खुशबू नहीं बदबू मिलती है....गंदगी मिलती है...गलियों से निकलें तो टूटी सड़कें मिलती है.....हां ये दिल्ली है साहेब....अब इन गलियों में बेबस और मजबूर इंसानियत रहती है....जो हरदम टकटकी लगाए रहती है रहनुमाओं पर...थोड़ी सी रहम की तलाश में....लेकिन रहम के नाम पर आश्वासन मिलता है...कोरे वायदे और झूठे आश्वासन....इसमें रहनुमाओं की नहीं...सफेद खद्दर का दोष है साहेब...जिसमें इंसान समाते ही कब संगदिल बन जाता है...उसे पता ही नहीं चलता....उसे ना तो आंखों से दिखाई पड़ता है और ना कानों से सुनाई ही पड़ता है....इंसानियत पुकारती है....आओ देखो...थोड़ा करीब से देखो....देखो जौक की इस दिल्ली को...देखो दिल्ली की सूरते हाल को....देखो टूटी फूटी इन सड़कों को...देखो सड़कों पर लगे कूड़े के अंबार को.....और महसूस करो नाक में छेद कर देने वाली इससे निकल रही दुर्गंध को....लेकिन उन्हें पता है कि हमारे रहनुमा बहरे हैं और सावन के अंधे भी...उन्हें तो सब तरफ हरा ही हरा दिखाई प़ड़ता है....चिल्लाने से कुछ फायदा नहीं

बेरुखी की ऊंची दीवारें

महानगरों की चकाचौंध के बीच सबकुछ ठीक ठाक नहीं है....या यूं कहिए कि जिस तरह रिश्तों में दूराव पैदा होने लगी है....उस तरह से कई जिंदगियां बेबस और गुमानामी की काल कोठरी में कैद होती जा रही है....नोएडा की अनुराधा और सोनाली भी महानगरों में फैलते अंधेरे की एक कड़वी हकीकत है....देश की राजधानी दिल्ली ने इससे पहले भी तन्हाई की डंक से तिल तिल कर मरती कई जिंदगियों को देखा है....एक दूसरे से जुदा हो जाने का खौफ हो...या फिर किसी अपने को खो जाने का गम....हर बार उन जिंदगियों को काल कोठरी में कैद कर जाती है...लेकिन अचरज तो तब होती है कि जब समाज भी उस भयानक तस्वीर को देखने के बाद कोई सबक नहीं लेता....चलिए सोनाली और अनुराधा के बहाने ही सही...दिनकर के शब्दों में वैभव कि दिवानी दिल्ली के सभ्य समाज की कुछ भयानक तस्वीर पर नजर डाल लेते हैं.... अगस्त 2007 में दिल्ली के कालकाजी इलाके में भूख और गुमनामी की मारी तीन बहनें...जिनमें से एक ने दम तोड़ दिया....माता-पिता की मौत के बाद इन तीनों ने खुद को अंधेरी कोठरी में कैद कर लिया था....डॉली, पूनम और नीरू नाम की ये तीनों बहनें कई बरसों से एक वक्त के खाने पर गुजारा कर रही थी....एक दिन ऐसा भी आया कि जब उनके पास खाने के लिए नमक पानी और चीनी से ज्यादा कुछ नहीं रह गया....नीरु एक दिन भूख सह नहीं सकी...और चल बसी....लेकिन बाकी दोनों बहनों ने उसकी लाश को कमरे में ही रहने दिया...उस घर में वे तब तक रही जब तक कि पड़ोस को उस घर से तेज बदबू नहीं आने लगी...सबसे बड़ी बात तीनों बहने पढ़ी लिखी थी...और उनमें से दो ने नौकरी भी की थी...इसके ठीक दो महीने बाद यानी अक्टूबर 2007 में दिल्ली के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश की एक कोठी से आ रही तेज दुर्गंध ने पड़ोसियों को परेशान कर दिया....पुलिस को खबर मिलने के बाद कोठी का दरवाजा तोड़ा गया तो उसमें करोड़पति मनिंदर सिंह भंडर की सड़ी गली लाश पाई गई....कमरे में अंधेरा फैला था..खाने का कोई सामान घर में नहीं मिला....पड़ोसियों ने बताया कि मनिंदर सिंह किसी से बात नहीं करते थे....मां की मौत के बाद मनिंदर को गहरे डिप्रेशन ने आ घेरा था...उम्मीद जताई गई कि मनिंदर को तन्हाई और खौफ ने मार डाला....इसी तरह सितंबर 2010 में पुलिस ने साकेत के एक फ्लैट से एक ऐसी महिला को बाहर निकाला...जो 30 दिन से अपनी मां की लाश के साथ कमरे में बंद थी....यहां तक कि उसे ये भी पता नहीं था कि उसकी मां मर चुकी है.....शालिनी मेहरा नाम की ये महिला तलाकशुदा थी...और अपनी मां के साथ ही उस फ्लैट में रह रही थी...यानी कि अकेलेपन ने शालिनी को गहरे अवसाद में डाल दिया था...बहरहाल ये चारों घटनाएं इस शहर के उन अंधेरे कोनों को दिखाने के लिए काफी है...जहां लोगों की निगाह भी नहीं पड़ती....इन चारों घटनाओं में एक ही बात सामने निकलकर आ रही है....और वो है अकेलापन का अहसास और अपनों के खोने का गम...लेकिन समाज की बेरुखी भी कम नहीं रही...क्योंकि समाज ने उनसे रिश्ता ही नहीं रखा...उनकी सुध ही नहीं ली........ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या ये एक सभ्य समाज की नियती बन चुकी है कि हर शख्स अपने अपने अपने अंधेरे कोने में चुपचाप जिएं और मर जाए....क्या बेरुखी की दीवारें इतनी ऊंची हो चुकी है कि साथ रहने वाला मौत को पुकार रहा होता है और कोई सुनने वाला नहीं होता....बहरहाल,इंसानी रिश्तों की टूटती कड़ी को समेटने का कोई ना कोई रास्ता ढूंढना ही होगा

Wednesday, April 6, 2011

छोटे गांधी की जिद

अन्ना हजारे की जिंदगी उतार चढ़ावों से भरी हुई है....बेहद ही गरीब परिवार में जन्मे अन्ना ने देश को हमेशा नई राह दिखाने का काम किया है.....महाराष्ट्र के अपने पैतृक गांव की कायापलट करने के बाद उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ दी....आज वे देश को भ्रष्टाचार से निजात दिलाने के लिए कमर कस चुके हैं....भ्रष्चार को जड़ से मिटा देने का संकल्प लेने वाली इस बूढ़ी काया...और जिद्दी इंसान आज देश का सुपरहीरो बन चुका है । बड़े अड़ियल हैं ये छोटे गांधी...कोई लालच नहीं...कोई डर नहीं...मर भी जाएं तो कोई बात नहीं...लेकिन भ्रष्चाटाचार के खिलाफ उठी आवाज को मद्धम नहीं पड़ने देंगे...जन लोकपाल बिल से कम तो कुछ भी नहीं....कोई समझौता नहीं...कोई मरव्वत नहीं....जिद हो तो ऐसी...ऐसी जिद तो सिर्फ महात्मा गांधी में ही देखने को मिलती थी....जब उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंका था....आज वही जिद समाजसेवी अन्ना हजारे में भी देखने को मिल रही है.....लोकपाल बिल के लिए आमरन अनशन पर जा बैठे हैं अन्ना हजारे....15 जून 1938 को महाराष्ट्र में जन्मे अन्ना हजारे का असली नाम किशन बाबूराव हजारे है....बेहद ही गरीब परिवार में जन्मे अन्ना की जिंदगी की शुरुआत मुंबई के दादर स्टेशन पर फूल बेचने से शुरु होती है....लेकिन बचपन से ही महापुरुषों के विचारों पर चलने का शौक उन्हें आगे जाकर एक सामाजिक कार्यकर्ता बना देता है....परिवार का भरण पोषण की खातिर अन्ना 1960 में सेना में भर्ती हुए....1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौराव वे पंजाब में सेना के ट्रक ड्राइवर की हैसियत से तैनात हुए....लेकिन बदकिस्मती से पाकिस्तान ने हवाई हमला कर दिया...जिसमें अन्ना ने किसी तरह गाड़ी से कूदकर अपनी जान बचाई....इसके बाद 1975 में अन्ना ने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले लिया....यहीं से शुरु होती है अन्ना की सामाजिक जिंदगी....महाराष्ट्र के अहमदनगर के अपने पैतृक गांव रालेगांव सिद्धी में उन्होंने गांव वालों को सर्वांगीण विकास के लिए प्रेरित करना शुरु कर दिया....गांव के कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्होंने बेहतर सिंचाई व्यवस्था, वर्षा जल को रोकने के लिए नहरों की खुदाई और मिट्टी संरक्षण में महत्वूर्ण भूमिका निभाई....नतीजतन आर्थिक निर्भरता में उनका गांव देश का रोल मॉडल बन गया....इनके प्रयासों से पूरे इलाके में अनाज बैंकों की नींव रखी गई....शिक्षा, स्वास्थ्य, शराबबंदी और सामूहिक विवाह के जरिए अन्ना ने अपने पूरे इलाके की तकदीर ही बदल दी....इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए भारत सरकार ने अन्ना हजारे को 1992 में पद्म विभूषण से नवाजा....बाद में वे सूचना के अधिकार कानून से जुड़ गए...और उसके लिए काम करना शुरु कर दिया...जिसकी बदौलत आज हम इस कानून का इस्तेमाल कर रहे हैं....इससे पहले 1989 में उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी जनांदोलन का गठन किया...जो आज 27 जिलों के 222 ब्लॉक में फैला हुआ है....अन्ना की इस मुहिम का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि....उन्होंने महाराष्ट्र में पिछले आठ सालों के दौरान अन्ना 400 सरकारी अफसरों और 7 मंत्रियों को कुर्सी छोड़ने पर मजबूर कर दिया... अब अन्ना ने जनलोकपाल बिल लाने के लिए अपनी जिद ठान ली है....हौसले बुलंद है....और सुनहरे भारत की तस्वीर को करीब से निहारने की तमन्ना बाकी....मौत से पंगा लेने वाले इस बूढ़ी काया में जिद को अगर करीब से देखनी हो तो चले आइए दिल्ली के जंतर मंतर...देखिए कैसे इस हाड़ मांस की काया ने सरकार को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है

Friday, March 25, 2011

लैपटॉप लो, वोट दो

लगभग ढाई हजार साल पहले ग्रीक फिलॉस्फर अरस्तू ने आशंका जाहिर की थी कि लोकतंत्र भीड़तंत्र में तब्दील हो सकता है....राजनेता लोगों को लालच देकर बरगला सकते हैं...पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में ग्रीक फिलॉस्फर की आशंका सही साबित होती दिख रही है.....अगर आप तमिनाडु के या फिर केरल के मतदाता हैं...तो ये दिल मांगे मोर कहने से कतई गुरेज नहीं करेंगे...बात ही ऐसी है....क्योंकि इन राज्यों के राजनीतिक पार्टियों ने कहा है कि गिफ्ट लो और वोट दो...जी हां, वोट दो और नोट लो की बातें अब पुरानी पड़ गई है....इसलिए अब बात हो रही है वोट दो और लैपटॉप लो.....वोट दो और फ्रीज लो...वोट दो और मंगलसूत्र लो.....ये नए जमाने के लुभावने और चुनावी नारे हैं....मासूम जनता को छलने के लिए और ठगने के लिए ताजातरीन रिश्वत है....अब ये जनता की विवेक पर निर्भर है कि एक अदना सा वोट के बदले उसे क्या चाहिए....सड़क, बिजली और पानी का आश्वासन चाहिए या फिर ठंडा पानी पीने के लिए फ्रीज....पेट में अन्न का दाना भले ही नहीं हो....लेकिन उंगलियों को लैपटॉप पर घूमाने के लिए पूराका पूरा भरोसा....पीने के लिए नल से पानी नहीं आता हो...लेकिन चिंता की कोई बात नहीं....नेताजी अगर सत्ता में आ गए तो सबको मिलेगा मिनरल वाटर...कितने दिनों तक फिलहाल पता नहीं....चलिए अब आते हैं असली बात पर....चुनावी मौसम आ गया है...इसलिए नेताओं में भी गिरगिट की तरह रंग बदलने की होड़ सी मच गई है...महत्वकांक्षाएं दुबारा कुलांचे मारने लगी है... पांच साल तक सत्ता से चिपने रहने और भ्रष्टाचार में नाक तक डूबे रहने के सपने आंखों में तैरने लगे हैं....अगले महीने तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव है...इसलिए राजनीतिक पार्टियों के नए पैतरें शुरु हो चुके हैं....सबसे पहला दांव चला मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने....फिर से सत्ता को हासिल करने के लिए उन्होंने घोषणा की...अगर उनकी पार्टी सत्ता में लौटते हैं तो वे छात्रों को लैपटॉप मुफ्त में बाटेंगे.....महिलाओं के लिए भी चारा फेंकने में कोई हिल हुज्जत नहीं की....और उनको दिया जाएगा मुफ्त में मिक्सर ग्राइंडर...साथ में 35 किलो चावल फ्री....अब भला अम्मा यानी की जयललिता कहां चूकने वाली थी...सो उन्होंने भी अपना ट्रंप कार्ड फेंका....उनका पैंतरा अपने प्रतिद्वंद्वी करुणानिधि से थोड़ा सा दमदार था....उन्होंने महिलाओं का नब्ज पकड़ते हुए उनके लिए मंगलसूत्र और चालीस ग्राम सोना मुफ्त देने का वादा किया....बीपीएल परिवारों के लिए मिनरल वाटर, ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्रों के लिए लैपटॉप और साथ ही गरीबों के लिए 20 किलो अनाज मुफ्त मुफ्त मुफ्त....अब जरा इस राज्य से इतर केरल पर नजर दौड़ाते हैं....लोकतंत्र का मजाक उड़ाने में यहां के राजनीतिक दल भी पीछे नहीं है....कांग्रेस नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंड ने चुनावी जीत होने पर 36 लाख नौकरियां, बीपीएल परिवारों के लिए एक रुपये प्रति किलो चावल और दसवीं के छात्रों के लिए मुफ्त में साइकिल देने का चारा फेंका है.....पश्चिम बंगाल में ममता अभी तक कांग्रेस से समझौते में लगी थीं....वो तो हो गया....अगर वो भी कोई नई तान छेड़ दें तो आश्चर्य नहीं....रही बात असम और पुडुचेरी की तो वहां का पूरा परिदृश्य ही अलग है...जरा सोचिए लोकतंत्र का इससे बड़ा भद्दा मजाक क्या हो सकता है....जहां जनता की वोट को बिकाउ करार दिया जाता है...जहां के कानून को ताक पर रखकर लोगों को रिश्वत खिलाई जा रही है...आखिर क्यों नहीं...एक बार रिश्वत खिलाओ...और पूरे पांच साल तक रिश्वत बटोरो...लोकतंत्र के इन पहरुओं के पास जनता की बुनियादी जरूरतों की कोई फिक्र नहीं है....फिक्र है तो सिर्फ और सिर्फ सत्ता से जन्म जन्मांतर तक चिपके रहने की...ताकि उनकी आने वाली कई पीढ़ियों का फ्यूचर संवारा जा सके....जनता जाए भाड़ में...काहे का जनता जनार्दन....काहे का लोकतंत्र

Saturday, March 5, 2011

ड्राइविंग सीट पर अदालत

इस देश में कितने गरीब...खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं, तन ढकने के लिए कपड़े नहीं और सिर छुपाने के लिए छत नहीं....योजनाएं बनती है गरीबों के लिए, लेकिन तिजोरी भरती है अमीरों की...गरीब और भी गरीब....अमीर और भी अमीर, इतना अमीर कि उसे अपनी दौलत दौलत छुपाने के लिए देश में जगह कम पड़ जाती है...मजबूरन उसे अपनी दौलत विदेशों में रखनी पड़ती है....जहां उसपर किसी की भी नजर ना पड़े....और हमारे देश का कानून तो देखिए.....कानून कहता है, चोर की जगह सलाखों के पीछे होना चाहिए....होता भी है...बल्कि खूब होता है....कोई किसी का जेब तराश ले, तो सड़ो छह महीने जेल में...किसी का माल उड़ा लिए, तो सलाखों से कोई नहीं बचा पाएगा....और तो और, कोई आम आदमी सरकार के हजार दो हजार रुपये टैक्स चुरा लिये....तो उसे भी थमा दी जाती है कानूनी नोटिस, जुर्माना भरो....या फिर जाओ जेल में....आखिर क्यों नहीं अपराधी जो ठहरा....लेकिन जरा सोचिए....अगर किसी को हजार दो हजार के लिए जेल मिल सकती है....तो सरकार के हजारों करोड़ रुपये चुराने वालों का क्या हश्र होना चाहिए....अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है....लेकिन इस देश में ऐसा कुछ नहीं होता....कानून तो छोटे मोटे अपराधियों के लिए ही होता है....बड़े अपराधियों तक वो पहुंच ही पाता...अगर पहुंच भी जाता है, तो कानून का पालन कराने वाले उसका गिरेबान पकड़ने के बजाय, उसके आगे दुम हिलाते नजर आते हैं....यही हमारे देश की तकदीर है....यही हमारे देश की तस्वीर है....हम आपको मिलाते हैं एक ऐसे ही शख्सियत से....ये हैं हसन अली....सैयद मोहम्मद हसन अली खान....पुणे में स्टड फॉर्म चलाते हैं.... हवाला कारोबार और मनी लॉंडरिंग के जरिए अकूत दौलत बनाई...अरबो डॉलर विदेशी बैंकों में जमा किए...एक अनुमान के मुताबिक करीब 8 अरब डॉलर.....लेकिन देश में इन्होंने अपनी कमाई पर कोई टैक्स नहीं चुकाया....1999 से ही कोई टैक्स जमा नहीं की....देश का पैसा चुराकर विदेशों में रख दिया....लेकिन सरकार ने इनपर शिकंजा कसने की कतई जरूरत नहीं समझी.....सरकार की नींद खुली जब काले धन को लेकर हो हल्ला मचने लगा...इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और प्रवर्तन निदेशालय सक्रिय हुआ....हालांकि आयकर विभाग ने 31 दिसंबर 2008 को नोटिस जारी कर, विदेशी बैंकों में जमा रकम का खुलासा नहीं करने के आरोप में 40 हजार करोड़ रुपये बतौर टैक्स की मांग की थी...लेकिन ये मांग सिर्फ नोटिस तक ही सीमित रही....पैसे वसूलने के लिए कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई...कोई कार्रवाई नहीं की गई....कभी कभी छापेमारी का दौर चलता रहा...लेकिन बात इससे आगे नहीं बढ़ी....कहा गया कि वो देश से फरार हो चुका है....लेकिन कहने वाले कहते रहे...देखने वाले देखते रहे...कि इस दौरान हसन अली भारत में ही मौजूद रहा....इनकम टैक्स के समन जारी करने के बाद हसन अली आईटी के सामने पिछले महीने के 18 तारीख को पेश हुआ...पूछताछ हुई लेकिन गिरफ्तारी नहीं की गई...जाहिर है सरकार इस मामले में ढीला रवैया अपनाती रही है....आखिरकार सरकार के इस रवैये से तंग आकर सुप्रीम कोर्ट को ही आगे आना पड़ा...इस मसले पर 3 मार्च यानी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को तगड़ी फटकार लगाई...और सरकार से सवाल पूछा कि आखिर किन वजहों से हसन अली को गिरफ्तार नहीं किया गया....और क्या आजादी सिर्फ ऐसे ही लोगों के लिए है....इसी तरह सीवीसी पीजे थॉमस की नियुक्ति को अवैध ठहराकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर सवालिया निशान लगा दिया....सवाल उठता है...कि क्या सरकार को उसकी जिम्मेदारी का एहसास दिलाने के लिए अदालतों को ही आगे आना पड़ेगा....क्या सरकार का काम सिर्फ शासन करना भर रह गया है....जिस काम को सरकार को करना चाहिए था...उस काम को अदालतें करेंगी....अब तो लोग सरकार से उम्मीदें कम....अदालतों से ज्यादा करने लगे हैं....आखिर ऐसा क्यों 

Wednesday, March 2, 2011

अमेरिका में दाडी यात्रा-2

12 मार्च 1930...भारतीय इतिहास का यादगार दिन.....इसी दिन महात्मा गांधी ने मात्र 78 स्वयंसेवकों के साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा शुरु की थी....शुरुआती दौर में ब्रिटिश हुकुमत के लिए भले ही ये पहले लगी हो....कि जिस यात्रा का अंत सिर्फ नमक बना कर खत्म होता हो...उससे ब्रिटिश सम्राज्य को क्या खतरा हो सकता है....लेकिन जल्द ही अंग्रेजों को एहसास हो गया कि ये सिर्फ यात्रा ही नहीं....बल्कि एक मुट्ठी नमक बनाकर ब्रिटिश हुकुमत से अंहिसापूर्वक लड़ने के लिए करोड़ों भारतीयों के दिलों में विश्वास पैदा करना भी था....6 अप्रैल 1930 को दांडी यात्रा खत्म होते होते ये यात्रा एक जन आंदोलन का रुप पकड़ चुकी थी....आज दांडी यात्रा का एक बार फिर जिक्र आ रहा है...और इस बार ये जिक्र भारत से नहीं बल्कि एक परायी धरती से निकलकर सामने आ रहा ...वो भी भारत के लिए....अंग्रेजों से लड़ने के लिए नहीं....बल्कि भारत में फैले भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए...जी हां....अमेरिका में अप्रवासी भारतीयों के एक समूह ने अमेरिकी धरती पर एक दांडी यात्रा शुरु करने का फैसला किया है...ये यात्रा भी उसी तारीख से शुरु होगी...जिस दिन महात्मा गांधी ने शुरु किया था...यानी 12 मार्च....दांडी की तरह इस यात्रा में भी 240 मिल पैदल ही दूरी तय की जाएगी....यात्रा की शुरुआत कैलिफोर्निया के सेन डियोगो स्थित मार्टिन लूथर किंग जूनियर मेमोरियल पार्क से होगी.....और लॉस एंजिल्स होते हुए 26 मार्च को सन फ्रांसिस्को स्थित गांधी मूर्ति के पास खत्म होगी....भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरु हो रही इस दांडी यात्रा दो में अमेरिका के सभी बड़े शहरों के अप्रवासी भारतीयों के अलावा...भारत के 10 शहरों और दुनिया भर के 8 देशों से लोग हिस्सा लेंगे....इस यात्रा के आयोजकों के मुताबिक दांडी यात्रा दो का मकसद भारत को भ्रष्टाचार से निजात दिलाना है....साथ ही भारत की सरकार को जनलोकपाल बिल और यूनाइटेड नेशन कंन्वेंशन अगेंस्ट करप्शन का अनुमोदन करना है....इस दांडी यात्रा दो में भारत के कई संगठनों का भरपूर समर्थन मिल रहा है...जिनमें से एंटी करप्शन मूवमेंट के अलावा लोकसत्ता पार्टी, इंडिया अगेंस्ट करप्शन, द फिफ्थ पिलर, यूथ फॉर बेटर इंडिया, साकू और सेव इंडिया करप्शन शामिल है

Saturday, February 19, 2011

जेपीसी पर दांवपेंच

 खूब हो हल्ला मचा, खूब बयानबाजी हुई...सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही...तो विपक्ष अपना राग अलापता रहा...पूरा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया...जनता की गाढ़ी कमाई बर्बाद होती रही...और सरकार तमाशा देखती रही...लेकिन लगता है कि अब सरकार को भी होश आ गया है....कहीं तीन महीने तक चलने वाला बजट सत्र भी खाक ना हो जाए...इसलिए टूजी स्पेक्ट्रम पर जेपीसी गठन को लेकर सरकार की तरफ से सुगबुगाहट भी तेज हो गई है...इसका संकेत तो शुक्रवार को ही संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने दे दिया था...जाहिर है सरकार भी पूरी तरह मन बना चुकी है...कि जेपीसी के गठन किए बिना बजट सत्र नहीं चलने वाला...लेकिन ऐसा भी नहीं कि सरकार ने विपक्ष के आगे घुटने टेक दिए हो....क्योंकि जेपीसी का गठन का दायरा सिर्फ टूजी स्पेक्ट्रम तक सीमित होगा...यानी कि दूसरे मामलों को इसके तहत लाने के लिए विपक्ष की मांग पर विचार ही नहीं किया जाएगा....जेपीसी गठन के बाद ही सरकार गेंद को अपने ही पाले में रखना चाहती है...और इसके लिए,  गठन से पहले ही इसकी काट भी तलाशनी शुरु कर दी है...वजह साफ है...अगर समिति बनती है तो इसमें कांग्रेस का पलड़ा दूसरी पार्टियों के मुकाबले कम होगा....क्योंकि लोकसभा में इस वक्त 37 पार्टियां हैं....लेकिन जेपीसी में केवल 8 या 9 पार्टियों को ही जगह मिल पाएगी....इसमें से ज्यादातर सदस्य टूजी स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाने वालों में से होंगे...यानी की कांग्रेस और उसके सहयोगी दल किसी भी कीमत पर जेपीसी में अलग थलग नहीं पड़ना चाहते...जाहिर है अगर सरकार को दूसरे दलों से इस मुद्दे पर समर्थन हासिल हो जाता है....तो अपना वर्चस्व कायम रखने में भी सहूलियत होगी....और इसके लिए सरकार ने कवायद भी शुरु कर दी है...गृहमंत्री पी चिदंबरम से समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव की शुक्रवार को हुई मुलाकात भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा..फिलहाल सोमवार से शुरु होने वाले बजट सत्र के पहले दिन इस पर चर्चा कराए जाने की संभावना है...और इसके अगले दिन यानी कि 22 फरवरी को सरकार लोकसभा में जेपीसी का प्रस्ताव पेश कर सकती है

Friday, February 11, 2011

'शक्ति' पर कहर

इस देश की अजब ही बिडंबना है....अजीब है इस देश में सबकुछ....जहां की उच्च सत्ता पर महिलाओं का कब्जा हो...वहां की महिलाएं सुकुन की जिंदगी से कोसों दूर हैं...हर पल खौफ में जीने को मजबूर है देश की आधी आबादी....यहां तो हर आधे घंटे के दौरान महिलाओं की इज्जत को तार-तार कर दिया जाता है...हर तीन मिनट पर उन्हें अपराध का शिकार बनाया जाता है....क्या ये एक लोकतंत्र के लिए शर्मनाक नहीं है....समानता के अधिकार का मजाक नहीं है...दर्द तो इस बात का है कि आज उच्च पदों पर बैठे लोग भी इस कड़वी हकीकत से नजरे चुराते नजर आते हैं...दर्द एक और है....और उस दर्द का रिश्ता हमारे उपराष्ट्रपति की पत्नी से है...जो खुद को मजबूर पाती हैं...बेबस पाती हैं....और आखिर में अपने उस दर्द को बेहद ही खौफनाक शब्दों में बयां करती है....तो क्या ये समझा जाए कि आधी आबादी की जिंदगी जलालत बन चुकी है...और अत्याचार उनकी किस्मत.. शुक्रवार शाम होते होते देश के अलग-अलग इलाकों से कई खबरें आती है....और ये खबरें महिला अस्तित्व से जुड़ी हुई होती है....उन खबरों के पीछे पुरुष की उस घिनौनी मानसिकता भी नजर आती है....जिसके तहत वो महिलाओं को सदियों से गुलाम मानता आया है....नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से एक बैग में महिला की लाश मिलती है...और देखते ही देखते सनसनी फैल जाती है....लखनऊ में एक युवक अपनी बाइक पर एक बारहवीं की छात्रा को बिठाना चाहता है...लेकिन वो लड़की बाइक पर बैठने से मना कर देती है...गुस्से में लड़का उस पर गोलियां दाग देता है....मध्यप्रदेश के जबलपुर में लड़की ने छेड़छाड़ से मना किया तो उसे जिंदा आग के हवाले कर दिया गया...ये सिर्फ एक दिन की खबरें हैं...पूरे महीने पर नजर डालेंगे तो तस्वीर और भयावह नजर आएगी...और पूरे साल की तो बात ही मत कहिए...हो सकता है आप ये कहने को मजबूर हो जाएं कि इस देश का तो भगवान ही मालिक है...
हर 3 मिनट पर 1 महिला होती है अपराध की शिकार
हर 9 मिनट पर पति या रिश्तेदारों की क्रूरता की शिकार
हर 29 मिनट में 1 महिला होती है रेप की शिकार
हर 77 मिनट पर दहेज हत्या का 1 मामला
हर 240 मिनट पर 1 महिला करती है खुदकुशी
चौंकिए मत...ये उसी भारत की भयावह तस्वीर है...जहां नारी को देवी स्वरूपा माना गया है...ये उसी भारत की तस्वीर है जहां के लोकतंत्र की गाथा पूरी दुनिया गाती है...ये उसी भारत की तस्वीर है जहां के राष्ट्रपति खुद एक महिला है...संसद की अध्यक्षता एक महिला ही करती है...देश की सत्ता पर काबिज यूपीए अध्यक्ष भी एक महिला ही है और सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की सत्ता भी एक महिला के हाथों में हैं....सुनने में भले ही ये सुखद लगे कि देश की उच्च सत्ता पर महिलाएं विराजमान हैं...उम्मीद की जा सकती है कि उस देश की महिलाओं की जिंदगी खुशहाल, उम्मीदें जगाने वाली और सतरंगी सपनों से लबरेज हो....लेकिन जब असलियत सामने आती है तो कलेजा मुंह को आ जाता है....जरा इस तस्वीर के एक और पहलु को भी देख लीजिए....शुरुआत करते हैं उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी के उस बयान से...जिसमें दर्द भी है...हमारी व्यवस्था को लेकर हताशा भी है और कड़वी हकीकत भी... लेकिन इस बयान पर बवाल खड़ा करने के बजाय गौर करने की जरूरत है....आखिर क्यों इस देश के उपराष्ट्रपति की पत्नी को कहना पड़ा कि बेटियों को पैदा होते ही मार दो...ताकि उन्हें बलात्कार जैसी घिनौनी करतूतों का शिकार ना होना पड़े....देश में महिलाओं के हालात क्या है ये किसी से छिपा भी नहीं है...घर के दहलीज से लेकर बाहर सड़क तक...हर जगह करनी पड़ती है आबरू की हिफाजत के लिए जद्दोजहद....खैर अब जरा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के उन आंकड़ों पर भी नजर डाल ही लेते हैं...साल 2009  के इन आंकड़ों के मुताबिक देश भर में महिलाओं से जुड़े 203804 मामले दर्ज किए गए...जिनमें बलात्कार के 21397 मामले सामने आए...जबकि महिलाओं के अपहरण के मामलों की संख्या 25741 रही...इसी तरह छेड़छाड़ के 38711 मामले दर्ज किए गये....जबकि यौन प्रताड़ना से संबंधित मामलों की संख्या 11009 रही...घर के दहलीज के अंदर महिलाएं कितनी सुरक्षित है....इन आंकड़ों से पता चल जाता है...अकेले 2009 में पति या फिर दूसरे संबंधियो की कूरता 89546 महिलाओं पर कहर बनकर बरपी....देश की राजधानी दिल्ली की हालत तो और चौंकाने वाली है....देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में से 23-8 फीसदी अकेले दिल्ली में ही होते हैं....आंकड़ों के लिहाज से देश में हर चौथी बलात्कार की घटना दिल्ली में ही होती है....देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश तो महिला अपराधों के मामले में सारी हदें पार कर दी है....यहां महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध देश के मुकाबले 11.9 फीसदी रही...आंकड़ों के मुताबिक इस प्रदेश में औसतन छह दिनों में एक महिला की अस्मत लूटी गई....चलिए इन अपराधों की एक बानगी भी देख लेते हैं....


हरियाणा की प्रीति बहल ने टीटीई के छेड़छाड़ से तंग आकर रेलवे ट्रैक पर जान देने की कोशिश की
जयपुर में एक युवक ने प्रेम का प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद कोचिंग से लोट रही छात्राओं के मुंह पर तेजाब फेंका
दिल्ली में सीआरपीएफ के एक जवान ने अपने साथी के साथ मिलकर छात्रा से किया चार महीनों तक बलात्कार
दिल्ली में एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल पर चार शिक्षिकाओं ने लगाए बलात्कार के आरोप
पटना में एक सीआरपीएफ जवान ने मोबाइल नंबर नहीं देने पर एक महिला खिलाड़ी को गोलियों से भूना
उत्तरप्रदेश में बलात्कार का विरोध करने पर दबंगों ने एक लड़की के हाथ पैर काट डाला
जेएनयू में पैसा कमाने की लालच में छात्रा की ब्लू फिल्म बनाई
लुधियाना में एक विवाहिता ने दहेज प्रताड़ना से तंग आकर आत्मदाह किया
मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में छेड़छाड़ के विरोध करने पर लड़की को जिंदा जलाया

ये तो उदाहरण भर है....उत्तरप्रदेश का बांदा दुष्कर्म केस और बिहार का रुपम मामला भी हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है....और हां खाप पंचायते तो पहले से ही महिलाओं को अपना शिकार बनाती रही है....जाहिर है अब तो आप समझ चुके होंगे कि सलमा अंसारी आखिर निराश क्यों है

Monday, February 7, 2011

नक्सलवाद: सबसे बड़ी चुनौती


नक्सलवाद तेजी से फल फूल रहा है...अपने ही देश के लोग लोकतंत्र को चुनौती दे रहे हैं....कामरेड माओ के सिद्धांत को मानने वाले इन लोगों के मुताबिक राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से निकलती है....यही वजह है कि इस सिद्धांत को जिंदा रखने के लिए जब तब इंसानी बलि भी ली जाती है...ये नक्सलियों की बढ़ती ताकत नहीं तो और क्या है....जिसके आगे सारा तंत्र बेबस हो जाता है....वे जब चाहे...तब सिस्टम की धज्जियां उड़ा देते हैं....बेकसूर लोगों को मौत की नींद सुला देते हैं....देश की संप्रभुता को चुनौती देने वाली इन ताकतों के हाथ विदेशी ताकतों से भी मिले होते हैं..वे कहते हैं कि देश में गरीबी है...अन्याय है और गैरबराबरी है....इसलिए देश को लाल क्रांति की जरूरत है....इसके लिए लोगों का खून बहता हो तो बहे....ताज्जुब तब और होता है जब,.गरीबी, बीमारी और भूखमरी को ढाल बनाए इन हाथों को एक खास तरह के बुद्धिजीवियों का समर्थन भी मिल जाता है...उनके पक्ष में लोकतंत्र के प्रहरियों के बीच से ही कई आवाजें उठने लगती है....लेकिन सच्चाई यही है कि नक्सली लोकतंत्रिक भारत के लिए पूरी तरह खतरा बन चुके हैं...देश अपने ही भीतरी राज्यों में छापामार युद्ध झेलने को मजबूर है....पिछले साल नक्सलियों ने कई राज्यों में हिंसा का तांडव मचाया...सिर्फ अप्रैल महीने में ही पांच राज्यों में 16 जगहों पर हमले किए गए...इसके बाद भी ये तांडव रुका नहीं...दंतेवाड़ा में पुलिस को निशाना बनाकर नक्सलियों ने ये दिखा दिया कि उनकी रणनीति,  हथियार और मारक क्षमता पहले से बेहतर हुई है...सबसे बड़ी बात...नक्सली देश के ज्यादातर राज्यों में अपनी पहुंच बना चुके हैं...साल 2004 में दो नक्सली गुटों एमसीसी और पीपुल्स वार ग्रुप के भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी माओवादी में विलय होने के बाद वे देश के करीब एक तिहाई हिस्से में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं..देश का 92 हजार किलोमीटर का इलाका नक्सली प्रभाव क्षेत्र में आता है...जिसे रेड कॉरिडोर कहा जाता है...223 जिलों में नक्सलियों की पैठ की बात सरकार भी मान चुकी है...आज देश के 14 राज्यों में नक्सवाद की लाल धारा बह रही है...लेकिन उन्हें रोकने में शासन पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है....अब तो कहा ये भी जाता है कि उनकी सांठगांठ पाकिस्तान के आईएसआई और दूसरे संगठनों से हो चुकी है...इस कारण वे पहले से और ज्यादा उग्र हो गए हैं.... उनके पास आधुनिक हथियार है...उनकी ताकत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है...पिछले तीन सालों के दौरान नक्सलियों ने दो हजार से ज्यादा लोगों की जानें ले ली है....पिछले साल नक्सली हिंसा में 877 आम नागरिकों की मौत हुई...जो पिछले दो सालों की तुलना में काफी ज्यादा है...जाहिर है इसमें हमेशा की तरह इसका खामियाजा आम लोगों को ही भुगतना पड़ता है....बहरहाल नक्सलियों के हौसले बुलंद है...वो बार एक नई ताकत के साथ हमला करते हैं....और सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती...

Saturday, January 29, 2011

मी गांधी बोलतेयो

वैष्णव जन तेने कहिए पीर पराई जान रे....ये मेरा प्रिय भजन है....जब तक जीवित रहा...इसे आत्मसात करता रहा....मुझे खुशी है कि मेरी मौत के बाद भी लोग इसे भूले नहीं है....आपको मेरी आवाज सुनकर ताज्जुब हो रहा होगा.....मैं महात्मा गांधी हूं....मोहनदास करमचंद गांधी वल्द करमचंद गांधी....दुनिया वाले प्यार से मुझे बापू बुलाते हैं.....वैसे रविंद्रनाथ टैगोर ने सबसे पहले मेरा नाम दिया था महात्मा...बाद में लोग भी मुझे महात्मा गांधी कहने लगे....प्यारे देशवासियों आज मेरी शहादत के 63 साल गुजर गए...लोग मेरी मौत को शहादत क्यों कहते हैं...अभी तक मुझे ये समझ में नहीं आया...लेकिन फिर भी इस शब्द का इस्तेमाल मुझे इसलिए करना पड़ रहा है कि क्योंकि ज्यादातर लोग मानते हैं कि मैं अपने कर्तव्य के बलिवेदी पर कुर्बान हुआ हूं....खैर आपका सोचना कितना सही है...इस बारे में मैं गहराई से जाना नहीं चाहता....मैं तो अपनी मौत के 63 साल बाद आपसे कुछ कहने आया हूं...पता नहीं आप मेरी बातों को कितना गंभीरता से लीजिएगा...कुछ बातें ऐसी भी होती हैं...जिसपर वक्त का धूल नहीं जमता...बल्कि वो हजारों साल बाद भी नूर की तरह चमकती रहती है...आज भी मैं आपसे कोई नई बात कहने नहीं जा रहा हूं....बल्कि पुरानी कही गई बातों को ही फिर से दुहरा रहा हूं......आज पूरा देश महंगाई, भ्रष्टाचार और भुखमरी से त्रस्त है....गरीब पहले से और गरीब होता जा रहा है...पूरी दुनिया बाजारवाद की गंभीर प्रसव पीड़ा से जूझ रही है....अपना देश भारत भी उन्हीं राहों पर निकल पड़ा है.....अगर आप मेरी बातों को ध्यान रखते तो शायद देश आज इस हालत में नहीं होता...भ्रष्टाचार और महंगाई तो इससे दूर ही रहती....मैं चिंता में डूबा हूं....पूरी दुनिया में आज दो अलग अलग तरह की दौड़ हो रही है...एक दौड़ उन लोगों की है जो संपन्न हैं...पर कुछ और पाने की लालसा लिए दौड़ में लगे हैं...दूसरी दौड़ उन लोगों की है जो दो जून की रोटी के लिए अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जूझ रहे हैं....मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आप भी उस दौड़ में लग चुके हैं....मुझे लगता है शायद आप मेरे उस मंत्र को भूल गए होंगे...जो मैने आपको दिया था ...
.जब भी कोई काम हाथ में लो..ये ध्यान रखो कि इससे सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति को क्या लाभ होगा...
लेकिन आज कौन सुनता है...कौन याद रखता है मेरी बातों को....सब अपने ही धुन में लगे पड़े हैं....शायद नतीजों से अंजान...उन्हें नहीं पता कि बाजारवाद का अंत कितना खतरनाक होता है...समाज के एक हिस्से को कुचलना भले ही आसान हो...पर याद रखो...उनकी आह तुम्हारे हिस्से की रोटी भी एक दिन छिन लेगी.... आप क्यों नहीं अपनाते मेरे ये सिद्धांत...बहुजन सुखाय, बहुजन हिताय...यानी सर्वोदय का सिद्धांत...जीओ और जीने दो...फिर देखों जिंदगी की राह कितना आसान हो जाती है....एक बात मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मैं भौतिक समृद्धि के खिलाफ नहीं हूं...और ना मैं मशीनों के इस्तेमाल को नकारता हूं...मैं तो बस इतना ही चाहता हूं कि मशीनों का दास मत बनो...मशीनें तुम्हारे लिए होनी चाहिए ना कि तुम मशीनों के लिए...शायद तुम्हें याद हो...एक बार मैंने कहा था कि
आर्थिक समानता अहिंसक स्वतंत्रता की असली चाबी है...शासन की अहिंसक प्रणाली कायम करना तब तक संभव नहीं है...जब तक अमीरों और करोड़ों भूखे लोगों के बीच की खाई बनी रहेगी
शायद तुमने इस बात का मतलब दूसरा ही निकाल लिया...तुमने तो उस खाई को और बढ़ा दिया है....गांवों के हालात तो और खराब होते जा रहे हैं...गांवों के लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं....शहर गरीबों को आसरा देने से इनकार कर रहा है....भूख से लोग बिलबिला रहे हैं....अमीर पहले से और अमीर हो गया है....क्या मुझे इतना भी हक नहीं है कि मैं तुमसे ये पूछ सकूं....क्यों मेरे सपने के भारत को बर्बादी के कगार पर ले जाने में तुले हो...

Thursday, January 20, 2011

फेरबदल का फरेब

किस किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा, आजाद हो चुके थे...बंदा बना के मारा....कुछ इसी तरह का हाल इस बार मनमोहन की पुरानी टीम के साथ भी हुआ...गनीमत ये रही कि इसमें मार हल्के से पड़ी....बल्कि यूं कहे कि जिन्हें मंत्रालय की समझ नहीं थी....और जिन्होंने अपने मंत्रालयों की जिम्मेदारी ठीक से नहीं समझी...उन्हें भेज दिया गया दूसरे मंत्रालय में....रणनीति ये भी थी कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरे मंत्रियों का विभाग बदलकर विपक्ष को चित्त कर दिया जाए...लेकिन सरकार को कौन समझाए कि चेहरे बदलने से दाग नहीं धुलते....बहरहाल जिन दिग्गजों का बोझ घटाया गया....और दूसरे मंत्रालयों में भेजा गया...उनमें पहला नाम खेलमंत्री रहे एमएस गिल साहब का आता है...कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार की मार झेल रहे गिल साहब को सांख्यिकी एवं योजना कार्यान्वयन मंत्रालय देकर दाग-दाग उजाला करने की कोशिश की गई है.....इसी तरह कॉमनवेल्थ खेलों में नाकामियों की वजह से सुर्खियां शहरी विकास मंत्री रहे जयपाल रेड्डी को भी चलता कर दिया गया...वहीं ग्रामीण विकास मंत्रालय संभालने में फिसड्डी साबित हुए सीपी जोशी को सड़क एवं परिवहन मंत्रालय थमा दिया गया....इसी तरह पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा की कार्यप्रणाली रास नहीं आया...तो उन्हें भी कॉरपोरेट डिपार्टमेंट में भेज दिया गया...वैसे भी मुरली देवड़ा साल में सात बार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में इजाफा कर अपनी नाकामी साबित कर दी थी....सड़क एवं परिवहन मंत्री कमलनाथ एक दिन में बीस किलोमीटर सड़क बनाने चले थे...लेकिन उनकी मेहरबानी से एक दिन में सात किलोमीटर भी सड़कें बनाने में पसीना आ जाता था....यही नहीं योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहुलवालिया के साथ भिड़ना भी उन्हें मंहगा पड़ गया...इसलिए उनको भी खोमचे में ढकेल दिया गया....चलिए बात उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की भी कर ली जाए....वे ठहरे सहयोगी दल के मंत्री...और सरकार उन्हें उंगली तो दिखाने से रही.... इसलिए सस्ता और आसान तरीका यही था कि उन्हें प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया...दरअसल प्रफुल्ल पटेल खुद भी चाहते थे कि उनका मंत्रालय बदल दिया जाए....और उन्हें कैबिनेट का दर्जा दिया जाए.....प्रफुल्ल पटेल अपने मंत्रालय की वजह से कई बार सुर्खियों में रहे....उनके कार्यकाल में एयर इंडिया लगातार घाटे की मार झेलती रही....इस वजह से सरकार की मंशा भी उन्हें उड्डयन मंत्रालय से बेदखल करने का भी रहा होगा...जाहिर है सरकार काम में फिसड्डी साबित मंत्रियों को दूसरे मंत्रालय में भेजकर पुरानी बोतल में नई शराब पेश की है 

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