Saturday, January 29, 2011

मी गांधी बोलतेयो

वैष्णव जन तेने कहिए पीर पराई जान रे....ये मेरा प्रिय भजन है....जब तक जीवित रहा...इसे आत्मसात करता रहा....मुझे खुशी है कि मेरी मौत के बाद भी लोग इसे भूले नहीं है....आपको मेरी आवाज सुनकर ताज्जुब हो रहा होगा.....मैं महात्मा गांधी हूं....मोहनदास करमचंद गांधी वल्द करमचंद गांधी....दुनिया वाले प्यार से मुझे बापू बुलाते हैं.....वैसे रविंद्रनाथ टैगोर ने सबसे पहले मेरा नाम दिया था महात्मा...बाद में लोग भी मुझे महात्मा गांधी कहने लगे....प्यारे देशवासियों आज मेरी शहादत के 63 साल गुजर गए...लोग मेरी मौत को शहादत क्यों कहते हैं...अभी तक मुझे ये समझ में नहीं आया...लेकिन फिर भी इस शब्द का इस्तेमाल मुझे इसलिए करना पड़ रहा है कि क्योंकि ज्यादातर लोग मानते हैं कि मैं अपने कर्तव्य के बलिवेदी पर कुर्बान हुआ हूं....खैर आपका सोचना कितना सही है...इस बारे में मैं गहराई से जाना नहीं चाहता....मैं तो अपनी मौत के 63 साल बाद आपसे कुछ कहने आया हूं...पता नहीं आप मेरी बातों को कितना गंभीरता से लीजिएगा...कुछ बातें ऐसी भी होती हैं...जिसपर वक्त का धूल नहीं जमता...बल्कि वो हजारों साल बाद भी नूर की तरह चमकती रहती है...आज भी मैं आपसे कोई नई बात कहने नहीं जा रहा हूं....बल्कि पुरानी कही गई बातों को ही फिर से दुहरा रहा हूं......आज पूरा देश महंगाई, भ्रष्टाचार और भुखमरी से त्रस्त है....गरीब पहले से और गरीब होता जा रहा है...पूरी दुनिया बाजारवाद की गंभीर प्रसव पीड़ा से जूझ रही है....अपना देश भारत भी उन्हीं राहों पर निकल पड़ा है.....अगर आप मेरी बातों को ध्यान रखते तो शायद देश आज इस हालत में नहीं होता...भ्रष्टाचार और महंगाई तो इससे दूर ही रहती....मैं चिंता में डूबा हूं....पूरी दुनिया में आज दो अलग अलग तरह की दौड़ हो रही है...एक दौड़ उन लोगों की है जो संपन्न हैं...पर कुछ और पाने की लालसा लिए दौड़ में लगे हैं...दूसरी दौड़ उन लोगों की है जो दो जून की रोटी के लिए अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जूझ रहे हैं....मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आप भी उस दौड़ में लग चुके हैं....मुझे लगता है शायद आप मेरे उस मंत्र को भूल गए होंगे...जो मैने आपको दिया था ...
.जब भी कोई काम हाथ में लो..ये ध्यान रखो कि इससे सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति को क्या लाभ होगा...
लेकिन आज कौन सुनता है...कौन याद रखता है मेरी बातों को....सब अपने ही धुन में लगे पड़े हैं....शायद नतीजों से अंजान...उन्हें नहीं पता कि बाजारवाद का अंत कितना खतरनाक होता है...समाज के एक हिस्से को कुचलना भले ही आसान हो...पर याद रखो...उनकी आह तुम्हारे हिस्से की रोटी भी एक दिन छिन लेगी.... आप क्यों नहीं अपनाते मेरे ये सिद्धांत...बहुजन सुखाय, बहुजन हिताय...यानी सर्वोदय का सिद्धांत...जीओ और जीने दो...फिर देखों जिंदगी की राह कितना आसान हो जाती है....एक बात मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मैं भौतिक समृद्धि के खिलाफ नहीं हूं...और ना मैं मशीनों के इस्तेमाल को नकारता हूं...मैं तो बस इतना ही चाहता हूं कि मशीनों का दास मत बनो...मशीनें तुम्हारे लिए होनी चाहिए ना कि तुम मशीनों के लिए...शायद तुम्हें याद हो...एक बार मैंने कहा था कि
आर्थिक समानता अहिंसक स्वतंत्रता की असली चाबी है...शासन की अहिंसक प्रणाली कायम करना तब तक संभव नहीं है...जब तक अमीरों और करोड़ों भूखे लोगों के बीच की खाई बनी रहेगी
शायद तुमने इस बात का मतलब दूसरा ही निकाल लिया...तुमने तो उस खाई को और बढ़ा दिया है....गांवों के हालात तो और खराब होते जा रहे हैं...गांवों के लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं....शहर गरीबों को आसरा देने से इनकार कर रहा है....भूख से लोग बिलबिला रहे हैं....अमीर पहले से और अमीर हो गया है....क्या मुझे इतना भी हक नहीं है कि मैं तुमसे ये पूछ सकूं....क्यों मेरे सपने के भारत को बर्बादी के कगार पर ले जाने में तुले हो...

Thursday, January 20, 2011

फेरबदल का फरेब

किस किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा, आजाद हो चुके थे...बंदा बना के मारा....कुछ इसी तरह का हाल इस बार मनमोहन की पुरानी टीम के साथ भी हुआ...गनीमत ये रही कि इसमें मार हल्के से पड़ी....बल्कि यूं कहे कि जिन्हें मंत्रालय की समझ नहीं थी....और जिन्होंने अपने मंत्रालयों की जिम्मेदारी ठीक से नहीं समझी...उन्हें भेज दिया गया दूसरे मंत्रालय में....रणनीति ये भी थी कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरे मंत्रियों का विभाग बदलकर विपक्ष को चित्त कर दिया जाए...लेकिन सरकार को कौन समझाए कि चेहरे बदलने से दाग नहीं धुलते....बहरहाल जिन दिग्गजों का बोझ घटाया गया....और दूसरे मंत्रालयों में भेजा गया...उनमें पहला नाम खेलमंत्री रहे एमएस गिल साहब का आता है...कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार की मार झेल रहे गिल साहब को सांख्यिकी एवं योजना कार्यान्वयन मंत्रालय देकर दाग-दाग उजाला करने की कोशिश की गई है.....इसी तरह कॉमनवेल्थ खेलों में नाकामियों की वजह से सुर्खियां शहरी विकास मंत्री रहे जयपाल रेड्डी को भी चलता कर दिया गया...वहीं ग्रामीण विकास मंत्रालय संभालने में फिसड्डी साबित हुए सीपी जोशी को सड़क एवं परिवहन मंत्रालय थमा दिया गया....इसी तरह पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा की कार्यप्रणाली रास नहीं आया...तो उन्हें भी कॉरपोरेट डिपार्टमेंट में भेज दिया गया...वैसे भी मुरली देवड़ा साल में सात बार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में इजाफा कर अपनी नाकामी साबित कर दी थी....सड़क एवं परिवहन मंत्री कमलनाथ एक दिन में बीस किलोमीटर सड़क बनाने चले थे...लेकिन उनकी मेहरबानी से एक दिन में सात किलोमीटर भी सड़कें बनाने में पसीना आ जाता था....यही नहीं योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहुलवालिया के साथ भिड़ना भी उन्हें मंहगा पड़ गया...इसलिए उनको भी खोमचे में ढकेल दिया गया....चलिए बात उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की भी कर ली जाए....वे ठहरे सहयोगी दल के मंत्री...और सरकार उन्हें उंगली तो दिखाने से रही.... इसलिए सस्ता और आसान तरीका यही था कि उन्हें प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया...दरअसल प्रफुल्ल पटेल खुद भी चाहते थे कि उनका मंत्रालय बदल दिया जाए....और उन्हें कैबिनेट का दर्जा दिया जाए.....प्रफुल्ल पटेल अपने मंत्रालय की वजह से कई बार सुर्खियों में रहे....उनके कार्यकाल में एयर इंडिया लगातार घाटे की मार झेलती रही....इस वजह से सरकार की मंशा भी उन्हें उड्डयन मंत्रालय से बेदखल करने का भी रहा होगा...जाहिर है सरकार काम में फिसड्डी साबित मंत्रियों को दूसरे मंत्रालय में भेजकर पुरानी बोतल में नई शराब पेश की है 

Pages