Monday, October 5, 2015

बिसवाड़ा के बहाने..

कहते हैं सियासत बहुत बड़ी चीज होती है..जिस तरह बिना तड़के की दाल...दाल नहीं रहती...उसी तरह बिना धर्म के सियासत...सियासत नहीं रहती...यानी सियासत अगर चमकानी है...तो उसे रगड़ने की जरूरत नहीं..बल्कि लपकने की जरूरत होती है...रगड़-रगड़ कर सियासत चमकाई भी नहीं जा सकती...बल्कि असल सियासदान वही है...जो मौका मिलते ही मौके को लपक ले....जिस देश में भूखे आदमी की रोटी से लेकर मुर्दे आदमी के कफन भी सियासतदानों की नजरों से नहीं बचती...उस देश में गाय कौन सी बड़ी बात है....ये देश ऐसा है...जहां किसी के लिए गाय माता हो जाती है...तो किसी के लिए गाय दाता...दादरी के बिसाहड़ा में हुआ क्या था...गाय के लिए इंसानों ने एक इंसान की जान ले ली...फिर वही गाय उनके लिए दाता बन गई...जो सियासत चमकाने के लिए इस गली से उस गली तक दौड़ लगाते हैं...बिसाहड़ा कांड में एक इंसान की जान ही तो गई थी...कौन सी बड़ी बात है...लेकिन किसी ने क्या सोचा....बड़े प्रदेश के इस छोटे कांड ने हमारे बेरोजगार बैठे नेताओं पर कितना बड़ा अहसान किया...अगले चुनावों तक खाली ही तो बैठे थे....केंद्र में 4 साल बाद चुनाव...यूपी में दो साल बाद...और बिहार में पांच दिन बाद....तब तक क्या करते...कुछ तो चाहिए...जिसे झुनझुने की तरह वो बजा सके...बड़ी मुश्किल से तो ये मौका मिला है...उस पर भी ये मीडिया वाले सवाल कर रहे...आखिर कोई कैसे चुप बैठ सकता है...हमें तो सियासतदानों की पीठ थपथपानी चाहिए...सही वक्त पर सही पकड़ लेते हैं...जैसे ही भनक लगी...दौड़ लिए बिसाहड़ा तक...शर्मा जी पहुंचे...ओवैसी भी पहुंचे...संगीत सोम से लेकर केजरीवाल तक इठला आए...राहुल बाबा भी कैसे पीछे रहते....उन्होंने भी बिसाहड़ा की पवित्र धरती पर कदम रख ही लिया...करना क्या था...अफसोस के दो शब्द ही तो बोलने थे...और वही किए...बोले कम...पाए ज्यादा...सच भी यही है ...गज धन और प्रेम धन से कम थोड़े ही होता है गौ धन...इसलिए सियासतदानों के लिए ये गौ रतन धन से कम नहीं...ई गौधन दूध ही नहीं...सियासत भी देता है

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