Friday, April 15, 2011

बेरुखी की ऊंची दीवारें

महानगरों की चकाचौंध के बीच सबकुछ ठीक ठाक नहीं है....या यूं कहिए कि जिस तरह रिश्तों में दूराव पैदा होने लगी है....उस तरह से कई जिंदगियां बेबस और गुमानामी की काल कोठरी में कैद होती जा रही है....नोएडा की अनुराधा और सोनाली भी महानगरों में फैलते अंधेरे की एक कड़वी हकीकत है....देश की राजधानी दिल्ली ने इससे पहले भी तन्हाई की डंक से तिल तिल कर मरती कई जिंदगियों को देखा है....एक दूसरे से जुदा हो जाने का खौफ हो...या फिर किसी अपने को खो जाने का गम....हर बार उन जिंदगियों को काल कोठरी में कैद कर जाती है...लेकिन अचरज तो तब होती है कि जब समाज भी उस भयानक तस्वीर को देखने के बाद कोई सबक नहीं लेता....चलिए सोनाली और अनुराधा के बहाने ही सही...दिनकर के शब्दों में वैभव कि दिवानी दिल्ली के सभ्य समाज की कुछ भयानक तस्वीर पर नजर डाल लेते हैं.... अगस्त 2007 में दिल्ली के कालकाजी इलाके में भूख और गुमनामी की मारी तीन बहनें...जिनमें से एक ने दम तोड़ दिया....माता-पिता की मौत के बाद इन तीनों ने खुद को अंधेरी कोठरी में कैद कर लिया था....डॉली, पूनम और नीरू नाम की ये तीनों बहनें कई बरसों से एक वक्त के खाने पर गुजारा कर रही थी....एक दिन ऐसा भी आया कि जब उनके पास खाने के लिए नमक पानी और चीनी से ज्यादा कुछ नहीं रह गया....नीरु एक दिन भूख सह नहीं सकी...और चल बसी....लेकिन बाकी दोनों बहनों ने उसकी लाश को कमरे में ही रहने दिया...उस घर में वे तब तक रही जब तक कि पड़ोस को उस घर से तेज बदबू नहीं आने लगी...सबसे बड़ी बात तीनों बहने पढ़ी लिखी थी...और उनमें से दो ने नौकरी भी की थी...इसके ठीक दो महीने बाद यानी अक्टूबर 2007 में दिल्ली के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश की एक कोठी से आ रही तेज दुर्गंध ने पड़ोसियों को परेशान कर दिया....पुलिस को खबर मिलने के बाद कोठी का दरवाजा तोड़ा गया तो उसमें करोड़पति मनिंदर सिंह भंडर की सड़ी गली लाश पाई गई....कमरे में अंधेरा फैला था..खाने का कोई सामान घर में नहीं मिला....पड़ोसियों ने बताया कि मनिंदर सिंह किसी से बात नहीं करते थे....मां की मौत के बाद मनिंदर को गहरे डिप्रेशन ने आ घेरा था...उम्मीद जताई गई कि मनिंदर को तन्हाई और खौफ ने मार डाला....इसी तरह सितंबर 2010 में पुलिस ने साकेत के एक फ्लैट से एक ऐसी महिला को बाहर निकाला...जो 30 दिन से अपनी मां की लाश के साथ कमरे में बंद थी....यहां तक कि उसे ये भी पता नहीं था कि उसकी मां मर चुकी है.....शालिनी मेहरा नाम की ये महिला तलाकशुदा थी...और अपनी मां के साथ ही उस फ्लैट में रह रही थी...यानी कि अकेलेपन ने शालिनी को गहरे अवसाद में डाल दिया था...बहरहाल ये चारों घटनाएं इस शहर के उन अंधेरे कोनों को दिखाने के लिए काफी है...जहां लोगों की निगाह भी नहीं पड़ती....इन चारों घटनाओं में एक ही बात सामने निकलकर आ रही है....और वो है अकेलापन का अहसास और अपनों के खोने का गम...लेकिन समाज की बेरुखी भी कम नहीं रही...क्योंकि समाज ने उनसे रिश्ता ही नहीं रखा...उनकी सुध ही नहीं ली........ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या ये एक सभ्य समाज की नियती बन चुकी है कि हर शख्स अपने अपने अपने अंधेरे कोने में चुपचाप जिएं और मर जाए....क्या बेरुखी की दीवारें इतनी ऊंची हो चुकी है कि साथ रहने वाला मौत को पुकार रहा होता है और कोई सुनने वाला नहीं होता....बहरहाल,इंसानी रिश्तों की टूटती कड़ी को समेटने का कोई ना कोई रास्ता ढूंढना ही होगा

1 comment:

  1. संवेदनशील और हकीकत बताता लेख

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