Wednesday, June 29, 2011

मिट गई चवन्नी

महंगाई की चुभन क्या होती है....ये कोई उनस पूछे...जिन्होंने चवन्नी की दुनिया देखी है....देखी है चवन्नी की बड़ी से बड़ी औकात...भले ही जेब में आज 100 रुपये का नोट हो...लेकिन तब की चवन्नी के आगे इस 100 रुपये की खुशियां कुछ भी नहीं.... महंगाई की मार से चवन्नी इस तरह बेबस हो जाएगी...किसी ने सोचा तक नहीं था....अब तो कहावतों में ही चवन्नी का जिक्र बाकी रह जाएगा। 30 जून को चवन्नी जब विदा लेगी...तो अपने पीछे ढेर सारी कहानियां और दिल में उठते उन टीसों को भी पीछे छोड़ जाएगी...जब चवन्नी मंहगाई की आंच में तिल तिल कर अपनी अंतिम सांसे गिन रही थी...मंहगाई की मार और सरकार के फैसलों से चवन्नी की छोटी बहनें पहले ही काल के गर्भ में समा चुकी हैं....उनमें एक पैसे, दो पैसे, पांच पैसे, दस पैसे और बीस पैसे के सिक्के शामिल हैं...अब बारी इसकी है...बुरे लोगों को भले ही चवन्नी कहा जाता हो....लेकिन हकीकत में चवन्नी थी बड़ी अनमोल....एक चवन्नी में हफ्तेभर का गोला...या छटाक भर मूंगफली बड़ी आसानी से मिल जाती थी...भले ही यकीन ना आए...लेकिन कई शहरों में तो सिनेमा का टिकट भी चवन्नी में ही मिल जाया करता था.....लेकिन आज तो बस पूछिए ही मत...महंगाई बढ़ने के साथ साथ पैसे की कीमत भी घटती चली गई....चवन्नी ही क्या यहां तक की अठन्नी भी अब ढूंढे नहीं मिलती...महानगरों में तो ये कब की गायब हो चुकी है...आज बाजार में भी ना तो 25 पैसे में कुछ मिलता है और ना 50 पैसे में....यानी जिस तरह चवन्नी को रुखसत किया जा रहा है...जल्द ही वो दिन भी आएगा जब बाजार से अठन्नी यानी 50 पैसे को भी बेआबरू किया जाएगा....जानकारों की माने तो किसी भी सिक्के को बाजार में लाने और हटाने से पहले आरबीआई का करंसी डिविजन मार्केट पर नजर रखता है...और मार्केट से मिलने वाली फीडबैक के आधार पर ही फैसला लिया जाता है...महंगाई बढ़ने की वजह से जिन सिक्कों की जरूरत खत्म हो जाती है...उन्हें मार्केट से हटा दिया जाता है...लेकिन अगर कोई चाहे तो हटाए गए सिक्कों के बदले चालू करेंसी रिजर्व बैंक से ले सकता है...लेकिन भला कौन चवन्नी की इस अनमोल विरासत को अपने से दूर करना चाहेगा....चवन्नी पहले भी अनमोल थी...अब भी है...और आने वाले वक्त में इसका जलवा बरकरार रहेगा...कीमत के रुप में ना सही...एक अनमोल विरासत के रुप में...मशहूर शायर आफताब लखनवी ने चवन्नी के कसीदे कुछ इस काढ़े थे....
मेरे वालिद अपना बचपन याद करके रो दिए...कितनी सस्ती थी नमकीन चार आने की...पूरा बोतल मेरा भाई तन्हा ही पी गया...मैने मजबूरी में लस्सी भर के पैमाने में पी

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